जर्मनी में अंतरराष्ट्रीय ‍ह‍िन्दी कार्यशाला संपन्न

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हिन्दी अब कहां-कहां पहुंच रही है, यह जानना एक सुखद आश्चर्य की तरह लगता है। कुछ महीने पहले मुझे जानकारी मिली थी कि जर्मनी के एक छोटे-से शहर में स्थि‍त बुर्जबर्ग विश्वविद्यालय में दो दिवसीय अंतरराष्ट्रीय हिन्दी कार्यशाला का आयोजन किया गया था, जिसका विषय था हिन्दी : अध्ययन, अध्यापन, अनुवाद और शोध। यह गोष्ठी बुर्जबर्ग विश्वविद्यालय की इंडोलाजी पीठ के द्वारा आयोजित की गई ी।

गोष्ठी को जर्मनी से दाद संस्था, ओस्लो की फैकल्टी ऑफ ह्यूमैनिटी और भारतीय दूतावास, बर्लिन का सहयोग प्राप्त था। पूरी राह बर्फ से ढंके इलाकों से निकलते हुए दो दिन बुर्जबर्ग के अपेक्षाकृत सौम्य मौसम में आयोजित कार्यशाला का पहला संबोधन 14 दिसंबर की शाम 5 बजे बुर्जबर्ग के प्रोफेसर बु्कनर ने दिया ा। संयोजक बारबारा लोत्ज़ ने गोष्ठी के आयोजन की जरूरत और दृ‍ष्टि को रेखांकित किया।

अपने सहज अंदाज में उन्होंने सहभागियों का आत्मीय अभिनंदन किया हम हिन्दीवाले कहकर! गोष्ठी का मंतव्य प्राच्य विद्या के अध्ययन में बदलती अभिरुचियों के अनुभवों को मंच प्रदान करने की इच्छा और इस अध्ययन के प्रति नए इंडोलॉजिस्ट की आकांक्षाओं को व्यक्त करना था। 'अनुवाद के माध्यम से भारतीय सा‍हित्य' शीर्षक अपने संदेश में बर्लिन स्थित भारतीय दूतावास के काउंसिलर (संस्कृति एवं शिक्षा) प्रोफेसर शिवप्रकाश ने भी अपना संदेश दिया।

हिन्दी की नई विविधताओं पर समारोह का आरंभिक व्याख्यान जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, दिल्ली से प्रोफेसर अन्विता अब्बी ने दिया। उनकी पावर पॉइंट प्रस्तुति में भारत के विभिन्न भागों में हिन्दी के विविधताभरे रूपों का सोदाहरण समावेश हुआ, जो काफी रोचक था।

तत्पश्चात एक मनोरंजक फिल्म दिखाई गई- बॉलीवुड में हिन्दी, जो हिन्दी सिनेमा जगत में हिन्दी के विविध प्रयोगों का निदर्शन करती थी। रात्रि भोज में भारतीय स्वाद के साथ गोष्ठी का पहला दिन संपन्न हुआ ा।

दूसरा दिन तमाम प्रस्तुतियों के लिए रखा गया था, जिसमें प्रश्नोत्तरों के माध्यम से रोचक विमर्श विमर्श भी हुआ। 15 दिसंबर का पहला सत्र 'साहित्यिक और मौखिक दक्षता' पर आधारित था। पहली प्रस्तुति हैम्बर्ग विश्वविद्यालय के एशिया-अफ्रीका संस्थान के भारत-तिब्बत संस्कृति और इतिहास विभाग से रामप्रसाद भट्ट की थी- विदेशी भाषा के रूप में हिन्दी का अध्यापन शीर्षक अपनी पावर पॉइंट में भट्ट ने बताया कि वैश्वीकरण के दौर में जिन भाषाओं को महत्ता प्राप्त हो रही है, हिन्दी उनमें से एक है। लेकिन युवा छात्रों में भाषा वै‍ज्ञानिक समझ और भाषा को सीखने की प्रक्रिया बदल रही है। इसलिए आवश्यक है कि हिन्दी शिक्षण की पारंपरिक पद्धति के स्थान पर अधिक प्रभावी और उपयुक्त पद्धति विकसित की जाए।

'बुदापैश्त' में हिन्दी साहित्य अध्ययन' शीर्षक प्रस्तुति ऐल्ते विश्वविद्यालय, बुदापैश्त में विजिटिंग प्रोफेसर विजया सती ने दी। उन्होंने बताया कि इस विश्वविद्यालय का भारोपीय अध्ययन विभाग हिन्दी के मौखिक और वार्तालाप शिक्षण के अतिरिक्त हिन्दी साहित्य के चुने हुए अंशों का अध्ययन करने को विशेष महत्व देता है।

पिछले दो वर्षों में पढ़ाए गए मुख्य पाठों का उल्लेख करते हुए डॉ. सती ने बताया कि ये पाठ विद्यार्थी को ‍हिन्दी के विविध रूपों से परिचित कराते हैं- जैसे बोलचाल की हिन्दी, संस्कृतनिष्ठ हिन्दी, उर्दू मिश्रित हिन्दी आदि। उन्होंने यह भी रेखांकित किया कि ये पाठ हिन्दी के नवीनतम विमर्शों-दलित और स्त्री विमर्श की अवधारणा को स्पष्ट करते हुए भारतीय संस्कृ‍ति को अधिकाधिक जानने में विद्यार्थी के लिए किस प्रकार उपयोगी सिद्ध हुए हैं।

वियना विश्वविद्यालय से अलका चौदल के आलेख का विषय था- 'हिन्दी वार्तालाप पर दृष्टिपात'। उन्होंने बताया कि किसी भी भाषा को सीखने में वार्तालाप एक जरूरी किंतु कठिन काम है, खासतौर से तब जब उस भाषा में संवाद करने के अवसर कम हों। वियना में इस क्षेत्र में अध्यापन सामग्री, अध्यापन के तरीके, मूल्यांकन और छात्रों की हिन्दी में रुचि पर अपने अनुभव पर आधारित प्रस्तुति अलका ने दी।

कॉफी ब्रेक के बाद का सत्र नई तकनीक और संसाधनों को समर्पित था। प्रोफेसर मार्टिन की अध्यक्षता में पहली प्रस्तुति ओस्लो से थी। प्रोफेसर पीटर ने ओस्लो नॉर्वे में बनाए गए डिजिटल हिन्दी डैटाबेस की जानकारी दी। इसकी शुरुआत हाइडल वर्ग से हुई और उन्होंने इस समय उपलब्ध विभिन्न शोध-कार्य प्रणालियों का प्रदर्शन किया और प्रतिभागियों के साथ-साथ अन्य विश्वविद्यालयों के सहयोग से कैसे इस डैटाबेस का भावी का भावी विकास हो, इस पर भी संवाद किया।

डॉ. मिर्या आरहूज विश्वविद्यालय, डेनमार्क के संस्कृति और समाज विभाग से आई थी। उन्होंने स्वीडन के विश्वविद्यालय में ऑनलाइन हिन्दी शिक्षण और बनारस में हिन्दी शिक्षण कार्यक्रम बनाए जाने के अपने अनुभव बांटे। दोनों ही काम उन्हें बहुत मांग करने वाले और प्रत‍िफल देने वाले लगे। उन्होंने अकादमिक आवश्यकता और हिन्दी में कुशलता के लिए विविधतापूर्ण अध्ययन और शिक्षण-दृष्टियों पर ध्यान केंद्रित किया।

एशियाई अध्ययन विभाग, टेक्सास से विष्णु शंकर ने अपनी रोचक प्रस्तुति द्वारा ‍जाहिर किया क‍ि कैसे ‍ वैश्वीकरण के दौर में वे हिन्दी भाषा-शिक्षण कक्षा में प्रामाणिक सामग्री को पर्यावरण, स्वास्थ्य, राजनीति जैसे क्षेत्रों से इंटरनेट और पत्र-पत्रिकाओं के माध्यम से जुटाते हैं। यह सामग्री विद्यार्थी को भाषा अध्ययन के चारों प्रमुख क्षेत्रों- सुनना, बोलना, पढ़ना और देखना तथा लिखना- में निपुण बनने के लिए प्रोत्साहन दे सकती है।

वियना विश्वविद्यालय से प्रोफेसर मा‍र्टिन गेंजले ने वियना विश्वविद्यालय में हिन्दी अध्ययन के विकास पर विहंगम दृष्टि डालते हुए दक्षिण एशियाई विभाग का इतिहास, पृष्ठभूमि और नई व्यवस्थाओं में बदलते पाठ्यक्रम की चर्चा की। उनके विभाग में हिन्दी के साथ एक और आधुनिक दक्षिण एशियाई भाषा पढ़ने के विकल्प के रूप में नेपाली को प्रस्तुत किया गया।

उप्साला विश्वविद्यालय स्वीडन से प्रो. हेंज वेसलर ने बदलते अकादमिक और बौद्धिक वातावरण में इंडोलॉजी के परिदृश्य को उजागर किया। डॉ. वेस्लर ने पिछले 12 वर्षों में मुख्य रूप से बॉन और उप्साला में हुए अकादमिक अनुभवों के आधार पर पाठ्‍यक्रम का अवलोकन किया।

लाइदन विश्वविद्यालय‍ नीदरलैंड से अभिषेक ने दक्षिण एशिया के बदलते भाषिक-राजनीतिक परिदृश्य से अपने कथन को जोड़ा। माइन्ज, जर्मनी के इंडोलॉजी संस्थान से प्रोफेसर कोनराद मेसिंग ने अनुवाद की एक कार्यशाला रिपोर्ट प्रस्तुत की, जो उनके विश्वविद्यालय‍ में पाठ्‍यक्रम का हिस्सा है। यह सामग्री संस्थान की वेबसाइट पर भी उपलब्ध है। ज्यूरिख से आमंत्रित मिरेला ने मृदुला गर्ग और अज्ञेय के लेखन के साहित्यिक अनुवाद पर पर्चा पढ़ा।

गोष्‍ठी के अंत में प्रोफेसर अव्वी, प्रोफेसर पीटर और बारबरा लोत्ज ने समापन निष्कर्ष दर्ज करते हुए कहा कि गोष्ठी का लक्ष्य था- जर्मनी और यूरोप के विभिन्न विश्वविद्यालयों में अध्यापन, अनुवाद और शोध से जुड़े अध्यापकों और शोधार्थियों का एक निकट समूह बने, जो भाषा के अध्ययन-अध्यापन की नवीनतम शैलियों का निरंतर अवलोकन-मूल्यांकन करता रहे। इस प्रकार की गोष्ठियों का आयोजन इसी दिशा में एक कदम है।

प्रस्तुति : विजया सती

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