प्रवासी कविता : इश्क में बड़ा रिस्क है...

- हरनारायण शुक्ला 
 

 
इश्क हमने भी किया था, 
लोगों को पता नहीं, 
जिससे इश्क किया था, 
उसे भी कुछ पता नहीं। 
 
एक बार उसे फूल दिया,
जूड़े में लगाने के लिए,
फूल दे दिया अपनी फूफी को,
मंदिर में चढ़ाने के लिए। 
 
सुहाने मौसम में उसे देख,
ज्यूं ही गाया 'मुझे तुमसे प्यार है',
धोबी का गदहा रेंका जोरों से,
वो बोली, गदहे की क्या आवाज है। 
 
कॉलेज जा रहा था साइकल से,
वो जा रही थी पैदल,
कहा, बैठ जाओ, पीछे है कैरियर,
वो ऐसे बैठी, मेरे बॉडी में हर जगह फ्रैक्चर।
 
इश्क के नशे में था, 
दुर्घटनाग्रस्त हो गया,
इश्क में बड़ा रिस्क है,
चलो पता तो चल गया। 

 

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