आज़ादी जिसे मैं रोज रखती !
तुम्हें भायी थी किसी और की बगिया
बिन खुशबू थोड़े फूल ज्यादा थे वहां पर
मेरी कोशिश नई थी अभी, वक्त तो देते
कपोल से फूल खिलने जितना वक्त दे देते !
जब तुम जा चुके थे दुलारा था खुद को
मैंने कर ली दोस्ती अपने आप से पक्की
आज वसंत बाद ग्रीष्म भी चमक रहा है
मैं अब नहीं करूंगी इंतज़ार किया था कभी !
तुम अब भी इंतजार करना चाहते हो
यह कशिश कभी खत्म नहीं होगी
उदासी बढ़ने दो मैंने आंखें मूंद ली हैं