- श्रीमती आशा मोर जन्म 25 अक्टूबर 1960 झाँसी (उप्र)। जीवविज्ञान में बीएससी 2002 में त्रिनिदाद अंतरराष्ट्रीय हिन्दी सम्मेलन तथा 2003 में सूरीनाम में सातवें विश्व हिन्दी सम्मेलन में हिस्सा लिया। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में कविताएँ प्रकाशित। सम्प्रति : मैनेजिंग डायरेक्टर सेंट क्लैएर, एमआरआई सेंटर, त्रिनिदाद और टोबेगो।
डेढ़ सौ वर्ष पूर्व जो आए यहाँ बोलते थे सब हिन्दी धीरे-धीरे अँग्रेजी बोलने में करने लगे गर्व और भूल गए हिन्दी
इच्छा हर माँ-बाप की होती नहीं मिला जो उनको मिल जाए उनके बच्चों को लेकिन भूल जाते हैं माँ-बाप अहमियत इसमें उस चीज की, जो मिली उन्हें विरासत में
अँग्रेजों के झाँसे में फँसकर आए थे यहाँ छोड़ घर-बार छोड़े अपने माई-बाप भाई-बंधु और परिवार
आकर यहाँ फँसे कुछ ऐसे न जा पाए फिर वो कभी उस पार कहानी है उनकी दर्दनाक पर नहीं है शर्मनाक
छोड़े नहीं उन्होंने अपने संस्कार और रीति-रिवाज
बुजुर्गों की मेहनत का फल वर्तमान पीढ़ी उठा रही है आज
अब फिर से जागी है उमंग मन में सीखें हम अपनी भाषा करने लगे वह गर्व अपनी भाषा पर और बढ़ने लगी जिज्ञासा
फिर से हिन्दी की लहर आई है करने को उनका उत्थान फिर से वह अब हिन्दी में पढ़ सकेंगे रामायण और वेद-पुराण
है ईश्वर से यही प्रार्थना बनी रहे उनकी अभिलाषा तन और मन में बसी रहे अपनी भाषा की गौरवगाथा।