तनाव अच्छा है

-अमृत साधन
सर्फ एक्सेल साबुन का मजेदार विज्ञापन हम टीवी पर रोज देखते हैं। लोगों के साफ कपड़ों पर दाग पड़ते हैं और जिसकी गलती है वही सर्फ एक्सेल का छोटा पैकेट उन्हें देता है और दोस्ती का हाथ बढ़ाता है। पीछे से एक नटखट आवाज आती है, 'दाग अच्छे हैं'।

तनाव के बाबत मैं यही कहना चाहती हूँ कि तनाव अच्छा है, बशर्ते हम उसका सही उपयोग करें। तनाव या स्ट्रैस आधुनिक समय की देन है। आज यह समस्या कल्पनातीत रूप से बढ़ गई है। महानगरों में रहने वाले लोगों के जीवन में जो तनाव है उसका लंदन विश्वविद्यालय ने सर्वेक्षण किया था, उसमें यह पाया गया है कि तनाव के कारण जितने लोगों को कैंसर या दिल की बीमारी होती है उतनी सिगरेट, शराब या गरिष्ठ भोजन से भी नहीं होती।

  भारतीय समाज में नृत्य आम जीवन में सम्मानित नहीं है, लेकिन समग्रता से किया गय नृत्य किसी भी दवाई से अधिक कारगर होता है      
लोगों के 90 प्रतिशत रोग भावनात्मक और मानसिक तनाव के अतिशय से होते हैं। कारखाने में होने वाली 80 प्रतिशत दुर्घटनाएँ तनावजनित होती हैं। आधुनिक मनुष्य का सुख-चैन छीनने वाला यह सबसे बड़ा दुश्मन है।

बीसवीं सदी में ऑस्ट्रिया के डॉक्टर हेन्स सैले ने इस भस्मासुर का अन्वेषण शुरू किया। उससे पहले लोग भरपूर मेहनत करते थे, भावों की धूप-छाँव में इतने अनभिज्ञ थे कि जब डॉ. सेले ने जर्मनी व फ्रांस में अपना सिद्धांत प्रस्तुत करने की खातिर उन भाषाओं का अध्ययन किया तो उन्हें पता चला कि उन भाषाओं में स्ट्रेस के लिए कोई शब्द नहीं हैं!

जीवन में घटने वाली घटनाओं को किस तरह झेलना, कैसे हजम करना, कैसे उनकी व्याख्या करना, इस बारे में शरीर में और मन में जो प्रतिक्रिया होती है उसे तनाव कहते हैं। तनाव प्रथम मानसिक और बाद में शारीरिक होता है। इसलिए आजकल एक अजीब वाकया हो रहा है। बिलकुल युवावस्था में लोग तनावग्रस्त हो जाते हैं क्योंकि उन पर छोटी आयु में बहुत बड़ी जिम्मेदारी होती है।

वे जिस माहौल में काम करते हैं वहाँ पर तेज प्रतिद्विंद्विता, अनिश्चितता, असुरक्षा इतनी सघन होती है कि उसका सामना करते हुए वे थक जाते हैं। आजकल तो स्कूल के बच्चे भी तनाव के शिकार होने लगे हैं। आज के इलेक्ट्रॉनिक युग में ज्ञान का विस्फोट हो गया। प्रसार माध्यम हर व्यक्ति के ज्ञानेन्द्रियों पर इस कदर आक्रमण करते हैं कि लोगों के मस्तिष्क पर प्रचंड तनाव आता है।

इस स्थिति का इलाज क्या है? क्या तनाव को आधुनिक मनुष्य की नियति मानकर स्वीकार किया जाए? नहीं, सचाई यह है कि कुछ मात्रा में तनाव आवश्यक है।

खेल में या कामकाज में स्वस्थ प्रतिद्विंद्विता, नए स्थानों पर जाने की या जोखिम उठाने की उत्कंठा इत्यादि से पैदा होने वाला तनाव आवश्यक है। वह टॉनिक का काम करता है। इससे मन व शरीर की सुप्त शक्तियाँ जाग्रत होती हैं और सामान्य स्तर से ऊपर उठाने की, अपनी गुणवत्ता को सुधारने का प्रयत्न आदमी करता है।

इस सकारात्मक तनाव को 'यूस्ट्रेस' कहते हैं यूस्ट्रेस प्रेरणादायी होता है। इसके न होने पर जीवन का नमक खो जाएगा। जिस जीवन में नई-नई चुनौतियाँ न हों वह कैसा जीवन!

ओशो की दृष्टि अत्यंत सकारात्मक है, उनके मुताबिक तनाव एक स्वागत करने योग्य ऊर्जा है। वे कहते हैं, 'तनाव क्या है? शरीर और मन में किसी कारणवश पैदा हुई अतिरिक्त ऊर्जा। लोग नहीं जानते कि उसका क्या उपयोग किया जाए, उसके साथ क्या सलूक किया जाए। वे इतने भयभीत हो जाते हैं कि तनाव की ओर देखना भी पसंद नहीं करते और तनाव को गहरे दबा देते हैं। उसके असर से शरीर में ग्रंथियाँ पैदा होती हैं। दिल की बीमारी, रक्तचाप ये सब दमित तनाव के भाई बंद हैं।

  कभी-कभी तनाव अत्यधिक होने पर नींद नहीं आती, ऐसे समय सोने की कोशिश न करें। उल्टे उस वक्त कोई न कोई व्यायाम करें      
तनाव पर निजात पाने के कुछ युक्तियाँ ओशो ने बताई हैं जिन पर अमल किया जा सकता है। सबसे महत्वपूर्ण बात जब शरीर और मन पर तनाव हो तब विश्राम न करें। उससे तनाव बढ़ेगा। अंदर जो ऊर्जा धूम मचा रही है उसे दिशा दें, उसे रूपांतरित करें। जो ऊर्जा तनाव बनी है, वही रूपांतरित होकर विश्राम बनेगी।

कभी-कभी तनाव अत्यधिक होने पर नींद नहीं आती, ऐसे समय सोने की कोशिश न करें। उल्टे उस वक्त कोई न कोई व्यायाम करें, घर के आसपास चक्कर लगाएँ, कोई काम अधूरा रह गया हो तो उसे पूरा करें। तनाव को जीएँ, उसकी तरफ मुखातिब हों। उसे स्वीकार करें।

दूसरा बढ़िया उपाय है कोई तेज संगीत चलाकर उस पर नृत्य करें। भारतीय समाज में नृत्य आम जीवन में सम्मानित नहीं है, लेकिन समग्रता से किया गय नृत्य किसी भी दवाई से अधिक कारगर होता है। अँगरेजी में कहते हैं, 'डांस अवे युवर ब्लूज', अपना अवसाद नाचकर भगाएँ। यह बिलकुल सही है। शरीर जितनी तेजी से गतिमान होगा उतना रक्त का अभिसरण तेजी से होगा, शरीर में इकट्ठी हुई टॉक्सिन्स यानी विषैले पदार्थ बाहर फिंका जाते हैं, भावों की घुटन दूर होती है और कुंद ऊर्जा मुक्त होकर प्रसन्न होती है।

यह कुछ ऐसा ही है जैसे कभी घर में पक्षी घुस आता है तो हम दरवाजे खिड़कियाँ खोलकर बाहर जाने में उसकी मदद करते हैं नहीं तो वह भीतर फड़फड़ाता रहेगा। तनाव भी ऐसा ही पंछी है जो आपके भीतर घुस आया है, उसका स्वागत कर उसे बाहर जाने का रास्ता दिखा दें।

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