तुम्हारा जीवन तुम पर निर्भर है...

शनिवार, 6 जून 2009 (10:51 IST)
न कोई कर्म, न कोई किस्मत, न कोई ऐतिहासिक आदेश- तुम्हारा जीवन तुम पर निर्भर है। उत्तरदायी ठहराने के लिए कोई परमात्मा नहीं, सामाजिक पद्धति या सिद्धांत नहीं है। ऐसी स्थिति में तुम इसी क्षण सुख में रह सकते हो या दुख में।

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स्वर्ग अथवा नरक कोई ऐसे स्थान नहीं हैं जहाँ तुम मरने के बाद पहुँच सको, वे अभी इसी क्षण की संभावनाएँ हैं। इस समय कोई व्यक्ति नरक में हो सकता है, अथवा स्वर्ग में। तुम नरक में हो सकते हो और तुम्हारे पड़ोसी स्वर्ग में हो सकते हैं।

एक क्षण में तुम नरक में हो सकते हो और दूसरे ही क्षण स्वर्ग में। जरा नजदीक से देखो, तुम्हारे चारों ओर का वातावरण परिवर्तित होता रहता है। कभी-कभी यह बहुत बादलों से घिरा होता है और प्रत्येक चीज धूमिल और उदास दिखाई देती है और कभी-कभी धूप खिली होती है तो बहुत सुंदर और आनंदपूर्ण लगता है।

दुनिया का कोई भी धर्म, संगठन और व्यक्ति तुम्हें आनंदित नहीं कर सकता और न ही उनके द्वारा तुम मोक्ष प्राप्त कर सकते हो। धर्म का मार्ग पंथहीन है। अधर्म का मार्ग ही पंथ वाला और संगठित होता है।

धार्मिक चोर...मचाए शोर :
दूसरा कोई आदमी जब भी महावीर होने की कोशिश करेगा तो वह चोर, महावीर हो जाएगा। दूसरा कोई आदमी अगर कृष्ण होने की कोशिश करेगा तो वह चोर, कृष्ण हो जाएगा।

कोई आदमी जब भी दूसरा आदमी होने की कोशिश करेगा तो आध्यात्मिक चोरी में पड़ जाएगा। उसने व्यक्तित्व चुराने शुरू कर दिए। और धर्म का हम यही मतलब समझ बैठे है: किसी के जैसे हो जाओ, अनुयायी बनो, अनुकरण करो, अनुसरण करो, पीछे चलो, ओढ़ो, खुद मत रहो बस, किसी को भी ओढ़ो।

इसीलिए कोई जैन है, कोई हिंदू है, कोई ईसाई है, कोई बौद्ध है। ये कोई भी धार्मिक नहीं हैं। ये धर्म के नाम पर गहरी चोरी में पड़ गए हैं। अनुयायी चोर होगा ही आध्यात्मिक अर्थों में, उसने किसी दूसरे व्यक्तित्वों को चुरा कर अपने पर ओढ़ना शुरू कर दिया जो वह नहीं है। पाखंड, हिपोक्रेसी परिणाम होगा।

साभार : ज्यूँ की त्यूँ धरि दिन्हीं चदरिया और ओशो की अन्य पुस्तकों से अंश
सौजन्य : ओशो इंटरनेशनल फाउंडेशन