स्पिरिच्युअल मैप ऑफ महावीर

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जैसे पर्वतों में हिमालय है या शिखरों में गौरीशंकर, वैसे ही व्यक्तियों में महावीर हैं। बड़ी है चढ़ाई। जमीन पर खड़े होकर भी गौरीशंकर के हिमाच्छादित शिखर को देखा जा सकता है लेकिन जिन्हें चढ़ाई करनी हो और शिखर पर पहुँचकर ही शिखर को देखना हो, उन्हें बड़ी तैयारी की जरूरत है।

दूर से भी देख सकते हैं महावीर को, लेकिन दूर से जो परिचय होता है वह वास्तविक परिचय नहीं है। महावीर में तो छलांग लगाकर ही वास्तविक परिचय पाया जा सकता।

महावीर की उत्सुकता न तो काव्य में है, और न तर्क में। उनकी उत्सुकता है जीवन के तथ्‍य, जीवन की वैज्ञानिक खोज, अविष्कार में। इसलिए महावीर ने समाधि के कोई गीत नहीं गाए। और न ही महावीर ने जो कहा है उसके लिए कोई तर्क उपस्थित किए हैं।

तर्क उपस्थित किए जा सकते हैं, हर बात के लिए। और ऐसी कोई भी बात नहीं, जिसके पक्ष में या विपक्ष में तर्क उपस्थित न किए जा सकें। तर्क दुधारी तलवार है। तर्क मंडन भी कर सकता है, खंडन भी। लेकिन तर्क से कोई सत्य की निष्पत्ति नहीं होती।

महावीर तर्क की चिंता नहीं करते। महावीर गीत की भी चिंता नहीं करते। महावीर आत्मिक जीवन का शुद्ध विज्ञान उपस्थित करना चाहते हैं। वह दिशा बिलकुल अलग है।

क्या अनुभव हआ है, उसे प्रकट करना व्यर्थ है, उन लोगों के सामने जिन्हें कोई अनुभव नहीं हुआ। कैसे अनुभव हो सकता है, उसकी प्रक्रिया ही प्रकट करनी आवश्यक है। और अनुभव के मार्ग पर क्या-क्या घटित होगा, उसका नक्शा देना जरूरी है क्योंकि अनंत है यात्रा और कहीं से भी भटकाव हो सकता है। अनंत हैं पहेलियाँ, अनंत हैं मोड़, अनंत पगडंडियों का जाल है, उसमें अगर नक्शा साफ न हो तो आप एक भूलभुलैया में भटक जाएँगे।

इसलिए महावीर की पूरी चेष्ठा है, एक स्पिरिच्युअल मैप, एक आध्यात्मिक नक्शा निर्मित करने की कि आपके हाथ में एक ठीक गाइड हो और आप एक-एक कदम जाँच कर सकें और एक-एक पड़ाव को पहचान सकें कि यात्रा ठीक चल रही है, दिशा ठीक है। और ‍जिस तरफ मैं जा रहा हूँ वहाँ अंतत: मुक्ति उपलब्ध हो पाएगी। यह दृष्टि खयाल में रहे तो महावीर को समझना बहुत आसान हो जाएगा।

साभार : महावीर-वाणी भाग-2 प्रवचन-14
सौजन्य : ओशो इंटरनेशनल फाउंडेशन

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