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सुनील लखोटिया
माहेश्वरी समाज की उत्पत्ति भगवान शिव के वरदान स्वरूप मानी गई है। उत्पत्ति दिवस ज्येष्ठ शुक्ल नवमी है, जो महेश नवमी के रूप में मनाई जाती है। महेश स्वरूप में आराध्य भगवान 'शिव' पृथ्वी से भी ऊपर कोमल कमल पुष्प पर बेलपत्ती, त्रिपुंड, त्रिशूल, डमरू के साथ लिंग रूप में शोभायमान होते हैं। भगवान शिव के इस बोध चिह्न के प्रत्येक प्रतीक का अपना महत्व है।
पृथ्वी : पृथ्वी गोल परिधि में है परंतु भगवान महेश ऊपर हैं अर्थात पृथ्वी की परिधि भी जिन्हें नहीं बाँध सकती वह एक लिंग भगवान महेश संपूर्ण ब्रह्मांड में सबसे ऊपर हैं।
त्रिपुंड : इसमें तीन आड़ी रेखाएँ हैं, जो कि संपूर्ण ब्रह्मांड को समाए हुए हैं। एक खड़ी रेखा यानी भगवान शिव का ही तीसरा नेत्र, जो कि दुष्टों के दमन हेतु खुलता है। यह त्रिपुंड भस्म से ही लगाया जाता है जो कि देवाधिदेव महादेव की वैराग्य वृत्ति के साथ ही त्यागवृत्ति की ओर इंगित करता है तथा हमें आदेश देता है कि हम भी अपने जीवन में हमेशा त्याग व वैराग्य की भावना को समाहित कर समाज व देश का उत्थान करें।
त्रिशूल : विविध तापों को नष्ट करने वाला एवं दुष्ट प्रवृत्ति का दमन कर सर्वत्र शांति की स्थापना करता है। डमरू : स्वर, संगीत की शिक्षा देकर कहता है उठो, जागो और जनमानस को जागृत कर समाज व देश की समस्याओं को दूर करो, परिवर्तन का डंका बजाओ। कमल : जिसमें नौ पंखुड़ियाँ हैं, जो कि नौ दुर्गाओं का द्योतक है। नवमी ही हमारा उत्पत्ति दिवस है। कमल ही ऐसा पुष्प है जिसे भगवान विष्णु ने अपनी नाभि से अंकुरित कर ब्रह्माजी की उत्पत्ति की। महालक्ष्मी कमल पर ही विराजमान हैं व दोनों हाथ में कमल पुष्प लिए हैं।ज्ञान की देवी सरस्वतीजी भी श्वेत कमल पर विराजमान हैं। इतना ही नहीं कमल कीचड़ में खिलता है, जल में रहता है, परंतु किसी में भी लिप्त नहीं। अतः यही भाव हमारे समाज का होना चाहिए। काम करेंगे-करते रहेंगे, न कोई फल की इच्छा, न कोई पद की चाह, न कोई मान-सम्मान। बस हम भी कमल की तरह खिलते रहें, मंगल करते रहें।