हरियाली तीज

- अंजली वागदे

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असल में हर त्योहार या उत्सव को मनाने के पीछे के पारंपरिक तथा सांस्कृतिक कारणों के अलावा एक और कारण होता है, मानवीय भावनाओं का। चूँकि प्रकृति मनुष्य को जीवन देती है, जल, नभ और थल मिलकर उसके जीवन को सुंदर बनाते हैं और जीवनयापन के अनगिनत स्रोत उसे उपलब्ध करवाते हैं। इसी विश्वास और श्रद्धा के साथ प्रकृति से जुड़े तमाम त्योहार तथा दिवस मनाए जाते हैं।

वृक्षों, फसलों, नदियों तथा पशु-पक्षियों को पूजा जाता है, उनकी आराधना की जाती है। ताकि समृद्धि के ये सूचक हम पर अपनी कृपा सदैव बनाए रखें। हरियाली तीज को भी हम इसी कड़ी में रख सकते हैं। यह शिव-तथा गौरी की आराधना का दिन है। गौरी और शिव सुखद व सफल दांपत्य जीवन को परिभाषित करते हैं अतः इनकी पूजा इसी अभिलाषा से की जाती है कि वे पूजन तथा व्रत करने वाली को भी यही वरदान दें।

भारत में कई स्थानों पर कुँवारी युवतियाँ भी इस दिन अच्छे वर की कामना से व्रत रखती हैं। यह दिन स्त्रियों के लिए श्रृंगार तथा उल्लास से भरा होता है। हरी-भरी वसुंधरा के ऊपर इठलाते इंद्रधनुषी चुनरियों के रंग एक अलग ही छटा बिखेर देते हैं। स्त्रियाँ पारंपरिक तरीकों से श्रृंगार करती हैं तथा माँ पार्वती से यह कामना करती हैं कि उनकी जिंदगी में ये रंग हमेशा बिखरे रहें।

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विवाहित स्त्रियाँ इस दिन खासतौर पर मायके आती हैं और यहाँ से उन्हें ढेर सारे उपहार दिए जाते हैं, जिसे तीज का शगुन या सिंजारा कहा जाता है। इसी तरह जिस युवती का विवाह तय हो गया होता उसे उसके ससुराल से ये सिंजारा भेजा जाता है।

पूजन के बाद महिलाएँ मिलकर शिव-गौरी के सुखद वैवाहिक जीवन से जुड़े लोकगीत गाती हैं। इन लोकगीतों की मिठास समूची प्रकृति में घुली हुई सी महसूस होती है। इसके साथ ही आनंद लिया जाता है सावन के झूलों का भी। झूलों पर ऊँची-ऊँची पेंग लेती महिलाओं का उत्साह देखते ही बनता है।

मेहँदी भरे हाथों की खनक तथा सुमधुर ध्वनि के साथ छनकती चूड़ियाँ, माहौल को संगीतमय बना देती हैं। सौभाग्य और सुखी दांपत्य जीवन की कामना से मनाई जाने वाली तीन तीजों में से एक हरियाली तीज प्रकृति के सुंदर वरदानों के लिए उसका शुक्रिया अदा करने का भी उत्सव बन जाती है।

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