आंवला नवमी खासकर महिलाओं द्वारा यह नवमी पुत्ररत्न की प्राप्ति के लिए मनाई जाती है। कहा जाता है कि यह पूजा व्यक्ति के समस्त पापों को दूर कर पुण्य फलदायी होती है जिसके चलते कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की नवमी को महिलाएं आंवले के पेड़ की विधि-विधान से पूजा-अर्चना कर अपनी समस्त मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए प्रार्थना करती हैं।
* तत्पश्चात रोली, चावल, धूप दीप से वृक्ष की पूजा की जाती है।
* महिलाएं आंवले के वृक्ष का पूजन कर 7 या 108 परिक्रमाएं करती हैं। उसके बाद भोजन करने का विधान है जिसके प्रभाव से मनुष्य रोगमुक्त होकर दीर्घायु बनता है। कई स्थानों पर नगर प्रदक्षिणा की परंपरा भी है।
इस दिन क्या करें?
आंवला नवमी पर आंवले के वृक्ष के पूजन का महत्व है। इस दिन आंवले के वृक्ष के नीचे पूर्व दिशा में बैठकर पूजन कर उसकी जड़ में दूध देना चाहिए। इसके बाद पेड़ के चारों ओर कच्चा धागा बांधकर कपूर बाती या शुद्ध घी की बाती से आरती करते हुए 7 बार परिक्रमा करनी चाहिए। इस दिन महिलाएं किसी ऐसे गार्डन में जहां आंवले का वृक्ष हो, वहां जाकर वहीं भोजन करती हैं।
प्राचीन है परंपरा
अक्षय नवमी पर नगर प्रदक्षिणा करने से पूरे कार्तिक मास में किए गए दान-पुण्य तथा प्रदक्षिणा का फल मिलता है। वर्तमान में इसकी जानकारी कम लोगों को है लेकिन जिन्हें है, वे पूरी श्रद्धा से प्रदक्षिणा कर धर्मलाभ लेते हैं।