धनु राशि में सूर्य का प्रवेश : जानिए कब है धनु संक्रांति, क्या है महत्व, मुहूर्त, मंत्र और कथा
शुक्रवार, 9 दिसंबर 2022 (12:18 IST)
सूर्य के एक राशि से दूसरी राशि में जाने को संक्रांति कहते हैं। वर्ष में 12 संक्रांतियां होती हैं। धन संक्रांति पौष माह में होती है। अंग्रेजी कैलेंडर के अनुार इस बार 16 दिसंबर 2022 शुक्रवार को धनु रहेगी। धनु संक्रांति से खरमास प्रारंभ होता है। आओ जानते हैं कि किसे कहते हैं धनु संक्रांति, क्या है महत्व, मंत्र, कथा और कैसे करें पूजा।
धनु संक्रांति का महत्व । Significance of Dhanu Sankranti: इस संक्रांति से हेमंत ऋतु शुरू हो जाती है। यह कहा जाता है कि धनु राशि में सूर्य के आ जाने से मौसम में परिवर्तन हो जाता है और देश के कुछ हिस्सों में बारिश होने के कारण ठंड भी बढ़ सकती है। इस दिन के बारे में ऐसी मान्यता है कि यह दिन बेहद ही पवित्र होता है ऐसे में जो कोई इंसान इस दिन विधिवत पूजा करते हैं उनके जीवन के सभी कष्ट अवश्य दूर होते हैं और उनकी सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।
सूर्य का बृहस्पति की राशि में प्रवेश को ठीक नहीं माना जाता है, क्योंकि बृहस्पति में सूर्य कमजोर स्थिति में रहते हैं। वर्ष में दो बार सूर्य बृहस्पति की राशि में प्रवेश करता है। पहला धनु में और दूसरा मीन में। सूर्य की धनु संक्रांति के कारण मलमास होता है, जिसे खरमास भी कहते हैं। सूर्य का धनु या मीन में प्रवेश जब होता है तो इन दोनों माह में मांगलिक कार्य बंद कर दिए जाते हैं।
क्या करें : इन माह में धर्म के प्रति समर्पण भाव से इष्ट की आराधना, वैष्णव तथा शिव मंदिरों में जाकर सत्संग व कीर्तन का लाभ लें, वस्त्र-भोजन तथा औषधि का दान करना श्रेष्ठ होता है।
वर्जित कार्य : ज्योतिष के अनुनसार जब भी सूर्यदेव गुरु की राशि धनु या मीन में विराजमान होते हैं तो उस समय को खरमास कहा जाता है। खरमास में किसी भी तरह का कोई मांगलिक कार्य जैसे विवाह, यज्ञोपवित, गृह प्रवेश, मकान निर्माण, नया व्यापार या किसी भी तरह का कोई भी संस्कार नहीं करते हैं। उल्लेखनीय है कि खर का अर्थ होता है गधा अर्थात सूर्यदेव की इस समय गति धीमी हो जाती है।
धनु संक्रांति की पूजा- Dhanu Sankranti ki Puja
1. इस दिन भगवान सत्यनारायण की पूजा की जाते हैं। भगवान सत्यनारायण की षोडष पूजा करें। पूजन में शुद्धता व सात्विकता का विशेष महत्व है, इस दिन प्रात:काल स्नान-ध्यान से निवृत हो भगवान का स्मरण करते हुए भक्त व्रत एवं उपवास का पालन करते हुए भगवान का भजन व पूजन करते हैं।
2. नित्य कर्म से निवृत्त होने के बाद अपने श्रीहरि विष्णु की मूर्ति या चित्र को लाल या पीला कपड़ा बिछाकर लकड़ी के पाट पर रखें। मूर्ति को स्नान कराएं और यदि चित्र है तो उसे अच्छे से साफ करें।
3. पूजन में देवताओं के सामने धूप, दीप अवश्य जलाना चाहिए। देवताओं के लिए जलाए गए दीपक को स्वयं कभी नहीं बुझाना चाहिए।
4. फिर देवताओं के मस्तक पर हलदी कुंकू, चंदन और चावल लगाएं। फिर उन्हें हार और फूल चढ़ाएं। फिर उनकी आरती उतारें। पूजन में अनामिका अंगुली (छोटी उंगली के पास वाली यानी रिंग फिंगर) से गंध (चंदन, कुमकुम, अबीर, गुलाल, हल्दी, मेहंदी) लगाना चाहिए।
5. पूजा करने के बाद प्रसाद या नैवेद्य (भोग) चढ़ाएं। ध्यान रखें कि नमक, मिर्च और तेल का प्रयोग नैवेद्य में नहीं किया जाता है। प्रत्येक पकवान पर तुलसी का एक पत्ता रखा जाता है। पूजा में उन्हें केले के पत्ते, फल, सुपारी, पंचामृत, तुलसी, मेवा, इत्यादि भोग के तौर पर अर्पित जाता है।
6. अंत में उनकी आरती करके नैवेद्य और चरणामृत का प्रसाद सभी में बांटा जाता है
7. पूजा के बाद सत्यनारायण की कथा के बाद माता लक्ष्मी, भगवान शिव, और ब्रह्मा जी की आरती की जाती है।
खरमास के मंत्र-
- भगवान विष्णु का स्मरण कर 'ॐ नमो भगवते वासुदेवाय' इस द्वादश मंत्र का जाप करें।
खरमास की कथा- Kharmaas katha
संस्कृत में गधे को खर कहा जाता है। पौराणिक ग्रंथों में वर्णित खरमास की कथा के अनुसार भगवान सूर्यदेव सात घोड़ों के रथ पर सवार होकर लगातार ब्रह्मांड की परिक्रमा करते रहते हैं। उन्हें कहीं पर भी रूकने की इजाजत नहीं है। मान्यता के अनुसार उनके रूकते ही जन-जीवन भी ठहर जाएगा। लेकिन जो घोड़े उनके रथ में जुड़े होते हैं वे लगातार चलने और विश्राम न मिलने के कारण भूख-प्यास से बहुत थक जाते हैं। उनकी इस दयनीय दशा को देखकर सूर्यदेव का मन भी द्रवित हो गया। वे उन्हें एक तालाब के किनारे ले गए, लेकिन उन्हें तभी यह ध्यान आया कि अगर रथ रूका तो अनर्थ हो जाएगा। लेकिन घोड़ों का सौभाग्य कहिए कि तालाब के किनारे दो खर मौजूद थे।
भगवान सूर्यदेव घोड़ों को पानी पीने और विश्राम देने के लिए छोड़े देते हैं और खर अर्थात गधों को अपने रथ में जोत देते हैं। अब घोड़ा-घोड़ा होता है और गधा-गधा, रथ की गति धीमी हो जाती है फिर भी जैसे-तैसे एक मास का चक्र पूरा होता है तब तक घोड़ों को विश्राम भी मिल चुका होता है, इस तरह यह क्रम चलता रहता है और हर सौर वर्ष में एक सौर खर मास कहलाता है।