कार्तिक पूर्णिमा व्रत 2021 : शुभ मुहूर्त, महत्व, पूजा विधि, कथा, आरती, मंत्र और उपाय
kartik purnima 2021
शुक्रवार, 19 नवंबर 2021 को कार्तिक पूर्णिमा व्रत मनाया जा रहा है। यह पर्व दीपावली के पंद्रह दिनों के बाद कार्तिक पूर्णिमा के दिन पड़ता है। इस दिन देव दिवाली पर्व मनाया जाता है।
पूर्णिमा तिथि का आरंभ- बृहस्पतिवार, 18 नवंबर 2021 को 11.55 मिनट से शुरू होकर शुक्रवार, 19 नवंबर 2021 को 2.25 मिनट पर पूर्णिमा तिथि का समापन होगा। चूंकि 19 नवंबर को पूर्णिमा उदया तिथि में पड़ रही है इसलिए इसी दिन कार्तिक पूर्णिमा मनाई जाएगी।
कार्तिक पूर्णिमा पर चंद्रोदय का समय- 17:28:24 मिनट पर।
मान्यतानुसार देवता अपनी दिवाली कार्तिक पूर्णिमा की रात को ही मनाते हैं। इसलिए यह सबसे महत्वपूर्ण दिनों में से एक माना गया है। इस दिन नदी, घाट तथा तीर्थक्षेत्रों में स्नान का और अपनी क्षमतानुसार दान करने भी अधिक महत्व माना गया है। इस दिन किसी भी पवित्र नदी में स्नान करने से मनुष्य के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं। इस दिन किसी भी मंदिर, शिवालयों या नदी तट पर दीप दान करना भी विशेष महत्व का माना गया है। मान्यतानुसार इस दिन दीपदान करने से समस्त देवताओं का आशीर्वाद प्राप्त होता हैं।
Kartik Purnima Importance पुराणों में वर्णित हैं कि भगवान शिव ने त्रिपुरारी का अवतार लेकर त्रिपुरासुर और उसके असुर भाइयों को मार दिया था। इसी वजह से इस पूर्णिमा का अन्य नाम त्रिपुरी पूर्णिमा भी है। इसलिए, देवताओं ने राक्षसों पर भगवान शिव की विजय के लिए इस दिन दीपावली मनाई थी। कार्तिक पूर्णिमा के दिन भगवान शिव की विजय के उपलक्ष्य में, उनके भक्त गंगा घाटों पर तेल के दीपक जलाकर देव दीपावली मनाते हैं और लोग अपने घरों को सजाकर श्री विष्णु-मां लक्ष्मी का पूजन करने उनकी विशेष कृपा प्राप्त करते हैं। कार्तिक पूर्णिमा के दिन घर के मुख्य द्वार पर हल्दी मिश्रित जल डालकर हल्दी से स्वास्तिक बनाना चाहिए, ऐसा करने से मां लक्ष्मी घर में प्रवेश करके धन-धान्य का आशीर्वाद प्रदान करती हैं।
- कार्तिक पूर्णिमा के दिन सुबह उठकर ब्रह्म मुहूर्त में स्नान करें।
- अगर पास में गंगा नदी मौजूद है तो वहां स्नान करें। अगर न हो तो घर के पानी गंगा जल मिलाकर स्नान करें।
- सुबह के वक्त मिट्टी के दीपक में घी या तिल का तेल डालकर दीपदान करें।
- भगवान श्री विष्णु का पूजन करें। पूजन के समय 'नमो स्तवन अनंताय सहस्त्र मूर्तये, सहस्त्रपादाक्षि शिरोरु बाहवे। सहस्त्र नाम्ने पुरुषाय शाश्वते, सहस्त्रकोटि युग धारिणे नम:।।' मंत्र का जाप करें।
- इस दिन घर में हवन करवाएं अथवा पूजन करें।
- घी, अन्न या खाने की कोई भी वस्तु दान करें।
- शाम के समय भी मंदिर में दीपदान करें।
- इस दिन श्री विष्णु सहस्त्रनाम, विष्णु चालीसा का पाठ करें।
मंत्र-
- श्रीकृष्ण गोविन्द हरे मुरारे। हे नाथ नारायण वासुदेवाय।।
- इस दिन दीपदान करने का भी महत्व होता है। यदि आप किसी कारण नदी में दीपदान नहीं कर सकते तो इस दिन किसी पास के मंदिर में जा कर दीप-दान करें।
- चावल, शकर और दूध का दान या बहुत थोड़ी मात्रा में नदी में इन्हें बहाने से भी अक्षय पुण्य फल मिलता है।
- इस दिन अपने घर को गंदा बिल्कुल ना छोड़ें और साफ-सफाई जरूर करें। अपने घर के द्वार को भी सजाएं, ऐसा करने से घर में लक्ष्मी जी का आगमन होता है।
- घर के द्वार के सामने स्वास्तिक बनाएं तथा विष्णु भगवान और मां लक्ष्मी की पूजा करें।
- कार्तिक पूर्णिमा पर चांद जरूर देखें और साथ ही उसे मिश्री और खीर का भोग चढ़ाएं।
कथा- Kartik Poornima katha
कार्तिक पूणिँमा की पौराणिक कथा के अनुसार तारकासुर नाम का एक राक्षस था। उसके तीन पुत्र थे- तारकक्ष, कमलाक्ष और विद्युन्माली...भगवान शिव के बड़े पुत्र कार्तिकेय ने तारकासुर का वध किया। अपने पिता की हत्या की खबर सुन तीनों पुत्र बहुत दुखी हुए। तीनों ने मिलकर ब्रह्माजी से वरदान मांगने के लिए घोर तपस्या की। ब्रह्माजी तीनों की तपस्या से प्रसन्न हुए और बोले कि मांगों क्या वरदान मांगना चाहते हो।
तीनों ने ब्रह्मा जी से अमर होने का वरदान मांगा, लेकिन ब्रह्माजी ने उन्हें इसके अलावा कोई दूसरा वरदान मांगने को कहा। तीनों ने मिलकर फिर सोचा और इस बार ब्रह्माजी से तीन अलग नगरों का निर्माण करवाने के लिए कहा, जिसमें सभी बैठकर सारी पृथ्वी और आकाश में घूमा जा सके।
एक हजार साल बाद जब हम मिलें और हम तीनों के नगर मिलकर एक हो जाएं, और जो देवता तीनों नगरों को एक ही बाण से नष्ट करने की क्षमता रखता हो, वही हमारी मृत्यु का कारण हो। ब्रह्माजी ने उन्हें ये वरदान दे दिया। तीनों वरदान पाकर बहुत खुश हुए। ब्रह्माजी के कहने पर मयदानव ने उनके लिए तीन नगरों का निर्माण किया। तारकक्ष के लिए सोने का, कमला के लिए चांदी का और विद्युन्माली के लिए लोहे का नगर बनाया गया। तीनों ने मिलकर तीनों लोकों पर अपना अधिकार जमा लिया।
इंद्र देवता इन तीनों राक्षसों से भयभीत हुए और भगवान शंकर की शरण में गए। इंद्र की बात सुन भगवान शिव ने इन दानवों का नाश करने के लिए एक दिव्य रथ का निर्माण किया। इस दिव्य रथ की हर एक चीज देवताओं से बनी। चंद्रमा और सूर्य से पहिए बने। इंद्र, वरुण, यम और कुबेर रथ के चाल घोड़े बने। हिमालय धनुष बने और शेषनाग प्रत्यंचा बने।
भगवान शिव खुद बाण बने और बाण की नोक बने अग्निदेव। इस दिव्य रथ पर सवार हुए खुद भगवान शिव। भगवानों से बनें इस रथ और तीनों भाइयों के बीच भयंकर युद्ध हुआ। जैसे ही ये तीनों रथ एक सीध में आए, भगवान शिव ने बाण छोड़ तीनों का नाश कर दिया। यह वध कार्तिक मास की पूर्णिमा को हुआ, इसीलिए इस दिन को त्रिपुरी पूर्णिमा नाम से भी जाना जाने लगा। इसी वध के बाद भगवान शिव को त्रिपुरारी कहा जाने लगा।