भगवान चित्रगुप्त को भगवान यमराज के साथ बताया जाता है। भगवान चित्रगुप्त की कार्तिक शुक्ल द्वितीया अर्थात भाईदूज के दिन पूजा करते हैं। भाईदूज के दिन कलम, स्याही, पुस्तक, बहिखाता आदि की पूजा करते हैं। वैशाख शुक्ल षष्ठी को उनका प्रकटोत्सव मनाया जाता है। आओ जानते हैं भगवान चित्रगुप्त के बारे में 10 रोचक बातें।
6. कहते हैं कि ब्रह्माजी ने चित्रगुप्तजी का विवाह वैवस्वत मनु (कश्यप ऋषि के पौत्र) की 4 कन्याओं से और नागों की 8 कन्याओं से कर दिया। उक्त बारह कन्याओं से उनके 12 पुत्र उत्पन्न हुए। तत्पश्चायत ब्रह्माजी ने उन्हें सभी प्राणियों का भाग्य लिखने का जिम्मा सौंपा और ब्रह्माजी की आज्ञा से यमलोक में विराजमान होकर दण्डदाता कहलाने लगे।
9. भगवान चित्रगुप्त ही ऋषि, देव, दानवों का भाग्य निर्धारित करते हैं। लेखनी धारक भगवान चित्रगुप्त ही है। भगवान चित्रगुप्त ही यमलोक में धर्माधिकारी नामक यम है।
10. अन्य मान्यता अनुसार ऐसा कहा जाता है कि चित्रगुप्त के अम्बष्ट, माथुर तथा गौड़ आदि नाम से कुल 12 पुत्र माने गए हैं। कायस्थों को मूलत: 12 उपवर्गों में विभाजित किया गया है। यह 12 वर्ग श्री चित्रगुप्त की पत्नियों देवी शोभावती और देवी नंदिनी के 12 सुपुत्रों के वंश के आधार पर है। भानु, विभानु, विश्वभानु, वीर्यभानु, चारु, सुचारु, चित्र (चित्राख्य), मतिभान (हस्तीवर्ण), हिमवान (हिमवर्ण), चित्रचारु, चित्रचरण और अतीन्द्रिय (जितेंद्रिय)। श्री चित्रगुप्तजी के 12 पुत्रों का विवाह नागराज वासुकि की 12 कन्याओं से हुआ जिससे कि कायस्थों की ननिहाल नागवंशी मानी जाती है। माता नंदिनी के 4 पुत्र कश्मीर में जाकर बसे तथा ऐरावती एवं शोभावती के 8 पुत्र गौड़ देश के आसपास बिहार, ओडिशा तथा बंगाल में जा बसे। बंगाल उस समय गौड़ देश कहलाता था। उपरोक्त पुत्रों के वंश अनुसार कायस्थ की 12 शाखाएं हो गईं- श्रीवास्तव, सूर्यध्वज, वाल्मीकि, अष्ठाना, माथुर, गौड़, भटनागर, सक्सेना, अम्बष्ठ, निगम, कर्ण और कुलश्रेष्ठ। जय चित्रगुप्त भगवान की जय।