आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को शरद पूर्णिमा कहा जाता है। इसे रास पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है। ज्योतिषशास्त्र के अनुसार पूरे वर्ष में केवल इसी दिन चंद्रमा सोलह कलाओं से निपुण होता है और इससे निकलने वाली किरणें इस रात्रि में अमृत बरसाती हैं। शरद पूर्णिमा की रात्रि को दूध की खीर बनाकर चंद्रमा की रोशनी में रखी जाती है। मान्यता है कि चंद्रमा की किरणें खीर में पड़ने से यह अमृत समान गुणकारी और लाभकारी हो जाती हैं।
महत्व
इसी दिन भगवान कृष्ण महारास रचना प्रारंभ करते हैं। देवीभागवत महापुराण के अनुसार गोपिकाओं के अनुराग को देखते हुए भगवान कृष्ण ने आज के दिन चंद्र को महारास का संकेत दिया था। चंद्र ने भगवान कृष्ण का संकेत समझते ही अपनी शीतल रश्मियों से प्रकृति को आच्छादित कर दिया और उन्हीं किरणों ने भगवान कृष्ण के चेहरे को दमकती आभा से युक्त कर दिया।