हरियाली तीज का महत्व एवं पूजन विधि जानिए..

राजश्री कासलीवाल
* हरियाली तीज : पढ़ें पूजन विधि एवं पर्व का महत्व...
 
 
हरियाली तीज व्रत हिन्दू धर्म का प्रमुख पर्व है। पूरे भारत में श्रावण माह के शुक्ल पक्ष तृतीया को तीज व्रत मनाया जाता है। श्रावण में आने के कारण इस पर्व का महत्व बहुत  अधिक माना जाता है। राजस्थान राज्य में यह पर्व बहुत ही धूमधाम से मनाया जाता है। इसे श्रावणी तीज, कजली तीज या मधुश्रवा तीज भी कहते हैं। इस वर्ष तीज का त्योहार बुधवार, 26 जुलाई 2017 को मनाया जाएगा। 
 
इस तीज व्रत में मां पार्वती के अवतार तीज माता की उपासना की जाती है। पौराणिक जानकारी के अनुसार मां पार्वती ही श्रावण महीने की तृतीया तिथि को देवी के रूप में (तीज  माता के नाम से) अवतरित हुई थीं। श्रावण महीना भगवान शिव को अधिक प्रिय होने के कारण एवं देवी पार्वती भगवान शिव की पत्नी हैं अत: इसी वजह से श्रावण के महीने में  भगवान शिव और उनकी पत्नी पार्वती को प्रसन्न करने के लिए माता पार्वती के अवतार तीज माता की उपासना की जाती है। 
 

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तीज पर्व के 1 दिन पहले ही विवाहित महिलाएं तथा कन्याएं अपने हाथों में मेहंदी लगाकर इसको मनाती हैं। इस व्रत का उद्देश्य यह है कि सुहागन महिलाएं अपना सौभाग्य बनाए  रखने के लिए भगवान शिव-पार्वती का व्रत रखती हैं। अविवाहित कन्याएं अच्छा पति पाने के लिए यह व्रत रखती हैं। 
 
शिव और पार्वती के पुनर्मिलाप के उपलक्ष्य में मनाए जाने वाले हरियाली तीज के त्योहार के बारे में मान्यता है कि मां पार्वती ने 107 जन्म लिए थे भगवान शंकर को पति के रूप  में पाने के लिए। अंतत: मां पार्वती के कठोर तप और उनके 108वें जन्म में भगवान ने पार्वतीजी को अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार किया। तभी से ऐसी मान्यता है कि इस व्रत  को करने से मां पार्वती प्रसन्न होकर पतियों को दीर्घायु होने का आशीर्वाद देती हैं।
 
इस त्योहार पर विवाह के पश्चात पहला सावन आने पर नवविवाहिता को ससुराल में नहीं छोड़ा जाता है अत: उन्हें ससुराल से मायके बुला लिया जाता है। तब ससुराल से इस  त्योहार पर सिंजारा भेजा जाता है जिसमें नए वस्त्र, आभूषण, श्रृंगार सामग्री तथा मेहंदी और मिठाई भेजी जाती है। यह पर्व हरियाली तीज से 1 दिन पहले सिंजारा के रूप में  मनाया जाता है। इस व्रत को निर्जला किए जाने का विधान है। 
 
पूजन विधि : 
 
यह त्योहार वैसे तो 3 दिन मनाया जाता है लेकिन समय की कमी की वजह से लोग इसे 1 ही दिन मनाते हैं। इसमें पत्नियां निर्जला व्रत रखती हैं। हाथों में नई चूड़ियां,  मेहंदी और पैरों में अल्ता लगाती हैं, जो सुहाग का चिह्न माना जाता है और नए वस्त्र पहनकर मां पार्वती की पूजा-अर्चना करती हैं। यह व्रत केवल महिलाओं तक ही सीमित नहीं  होता, बल्कि कई जगहों पर पुरुष मां की प्रतिमा को पालकी पर बैठाकर झांकी भी निकालते हैं।
 
क्या करें इस दिन : 
 
*सबसे पहले महिलाएं किसी बगीचे या मंदिर में एकत्रित होकर मां की प्रतिमा को रेशमी वस्त्र और गहने से सजाएं।
 
*अर्द्ध गोले का आकार बनाकर माता की मूर्ति बीच में रखें और माता की पूजा करें। 
 
* सभी महिलाओं में से एक महिला कथा सुनाएं, बाकी सभी कथा को ध्यान से सुनें व मन में पति का ध्यान करें और पति की लंबी उम्र की कामना करें।
 
* इस दिन सुहागिन महिलाएं अपनी सास के पांव छूकर उन्हें सुहागी देती हैं। सास न हो तो जेठानी या घर की बुजुर्ग महिला को देती हैं। 
 

*कुछ जगहों पर महिलाएं माता पार्वती की पूजा करने के पश्चात लाल मिट्टी से नहाती हैं। ऐसी मान्यता है कि ऐसा करने से महिलाएं पूरी तरह से शुद्ध हो जाती हैं।

 
* अनेक स्थानों पर तीज के दिन मेले लगते हैं और मां पार्वती की सवारी बड़े धूमधाम से निकाली जाती है। दिन के अंत में वे खुशी से नाचे-गाएं और झूला झूलें। 
 
* माता पार्वती से अपने सुहाग को दीर्घायु देने के लिए सच्चे मन से शिव-पार्वती की आराधना करके इस त्योहार को मनाएं। 
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