Mangala Gauri Pooja : वर्ष 2024 में सावन मास का द्वितीय मंगला गौरी इस बार 30 जुलाई 2024, दिन मंगलवार को मनाया जा रहा है। बता दें कि यह श्रावण मास के कृष्ण पक्ष का दूसरा मंगला गौरी व्रत है, जो कि आज पड़ रहा है और मंगलवार के दिन आने के कारण इसका महत्व बहुत अधिक माना जाता है। अत: परिवार की खुशी के लिए इस व्रत को लगातार 5 वर्षों तक किया जाता है। शास्त्रों के अनुसार यह मंगला गौरी व्रत नियमों के अनुसार करने से प्रत्येक मनुष्य के वैवाहिक सुख में बढ़ोतरी होकर पुत्र-पौत्रादि भी अपना जीवन सुखपूर्वक गुजारते हैं, ऐसी इस व्रत की महिमा है।
आइए जानते हैं दूसरे मंगला गौरी व्रत के बारे में खास जानकारी-
अर्थात्- मैं अपने पति, पुत्र-पौत्रों, उनकी सौभाग्य वृद्धि एवं मंगला गौरी की कृपा प्राप्ति के लिए इस व्रत को करने का संकल्प लेती हूं।
- तत्पश्चात मंगला गौरी के चित्र या प्रतिमा को एक चौकी पर सफेद फिर लाल वस्त्र बिछाकर स्थापित करें।
- प्रतिमा के सामने एक घी का दीपक (आटे से बनाया हुआ) जलाएं। दीपक ऐसा हो जिसमें 16 बत्तियां लगाई जा सकें।
- फिर 'कुंकुमागुरुलिप्तांगा सर्वाभरणभूषिताम्।
नीलकण्ठप्रियां गौरीं वन्देहं मंगलाह्वयाम्...।।'
- यह मंत्र बोलते हुए माता मंगला गौरी का षोडशोपचार पूजन करें।
- माता के पूजन के पश्चात उनको (सभी वस्तुएं 16 की संख्या में होनी चाहिए) 16 मालाएं, लौंग, सुपारी, इलायची, फल, पान, लड्डू, सुहाग की सामग्री, 16 चूड़ियां तथा मिठाई अर्पण करें। इसके अलावा 5 प्रकार के सूखे मेवे, 7 प्रकार के अनाज-धान्य (जिसमें गेहूं, उड़द, मूंग, चना, जौ, चावल और मसूर) आदि चढ़ाएं।
- इसके बाद मंगला गौरी की कथा सुनें या पढ़ें।
- इस व्रत में एक ही समय अन्न ग्रहण करके पूरे दिन मां पार्वती की आराधना की जाती है।
मंगला गौरी व्रत की पौराणिक कथा के अनुसार, एक समय की बात है एक शहर में धरमपाल नाम का एक व्यापारी रहता था। उसकी पत्नी काफी खूबसूरत थी और उसके पास काफी संपत्ति थी। लेकिन उनके कोई संतान नहीं होने के कारण वे काफी दुखी रहा करते थे।
ईश्वर की कृपा से उनको एक पुत्र की प्राप्ति हुई लेकिन वह अल्पायु था। उसे यह श्राप मिला था कि 16 वर्ष की उम्र में सांप के काटने से उसकी मौत हो जाएगी। संयोग से उसकी शादी 16 वर्ष से पहले ही एक युवती से हुई जिसकी माता मंगला गौरी व्रत किया करती थी। परिणामस्वरूप उसने अपनी पुत्री के लिए एक ऐसे सुखी जीवन का आशीर्वाद प्राप्त किया था, जिसके कारण वह कभी विधवा नहीं हो सकती थी।
अत: अपनी माता के इसी व्रत के प्रताप से धरमपाल की बहु को अखंड सौभाग्य की प्राप्ति हुई। इस वजह से धरमपाल के पुत्र ने 100 साल की लंबी आयु प्राप्त की। तभी से ही मंगला गौरी व्रत की शुरुआत मानी गई है।
इस कारण से सभी नवविवाहित महिलाएं इस पूजा को करती हैं तथा गौरी व्रत का पालन करती हैं और अपने लिए एक लंबी, सुखी तथा स्थायी वैवाहिक जीवन की कामना करती हैं। जो महिला उपवास का पालन नहीं कर सकतीं, वे भी कम से कम पूजा तो करती ही हैं। इस कथा को सुनने के बाद विवाहित महिला अपनी सास तथा ननद को 16 लड्डू देती है। इसके बाद वे यही प्रसाद ब्राह्मण को भी देती है।
इस विधि को पूरा करने के बाद व्रती 16 बाती वाले दीये से देवी की आरती करती है। व्रत के दूसरे दिन बुधवार को देवी मंगला गौरी की प्रतिमा को नदी या पोखर में विसर्जित कर दी जाती है। अंत में मां गौरी के सामने हाथ जोड़कर अपने समस्त अपराधों के लिए एवं पूजा में हुई भूल-चूक के लिए क्षमा मांग कर व्रत को पूर्ण किया जाता है। इस पूरे दिन मां पार्वती की आराधना की जाती है।
Mangala Gauri Pooja Upay मंगला गौरी व्रत के उपाय :
1. मंगलवार के दिन बंधुजनों को मिठाई का सेवन कराने से भी मंगल शुभ बनता है।
2. एक लाल वस्त्र में दो मुट्ठी मसूर की दाल बांधकर मंगलवार के दिन किसी भिखारी को दान करनी चाहिए।
3. मंगल दोष से पीड़ित कुंवारी युवतियों को इस दिन श्रीमद्भागवत के 18वें अध्याय के नवम् श्लोक का जप, गौरी पूजनसहित तुलसी रामायण के सुंदरकांड का पाठ करना चाहिए।
4. मंगला गौरी व्रत के दिन एक समय ही शुद्ध एवं शाकाहारी भोजन ग्रहण करना चाहिए।
5. विवाह योग्य जातक को मंगला गौरी व्रत के दिन मिट्टी का खाली पात्र चलते पानी में प्रवाहित करना चाहिए।
शिव की प्रिया पार्वती गौरी को प्रसन्न करने वाला यह व्रत करने वालों को अखंड सुहाग तथा पुत्र प्राप्ति का सुख मिलता है।
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