2023 Kalabhairav Jayanti : शिव पुराण के अनुसार मार्गशीर्ष मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को भगवान शंकर के अंश से भैरव की उत्पत्ति हुई थी। इसलिए इस तिथि को काल भैरवाष्टमी काल भैरव जयंती या भैरवाष्टमी के नाम से जाना जाता है। प्रतिवर्ष इस दिन कालाष्टमी व्रत तथा काल भैरव जयंती के रूप में भैरव जी की पूजा-अर्चना की जाती है, जगह-जगह भंडारे का आयोजन किया जाता है, जिसमें काले उड़द और चावल की खिचड़ी बनाकर भक्तों में वितरित की जाती हैं।
पौराणिक मान्यता के अनुसार एक बार जब अंधकासुर दैत्य ने अपनी क्षमताओं को भूलकर अहंकार में भगवान भोलेनाथ पर हमला कर दिया, तब उसके संहार के लिए शिव के खून से भैरव जी की उत्पत्ति हुई। काल भैरव शिव का ही स्वरूप हैं। इसलिए शिव की आराधना से पहले काल भैरव उपासना का विधान बताया गया है। उनकी साधना करने वाले भक्तों को अपने समस्त दुखों से छुटकारा मिल जाता है।
आइए यहां जानते हैं यहां मुहूर्त, पूजन विधि, कथा और मंत्र के बारे में समस्त जानकारी एक ही स्थान पर-
पूजा विधि- Kaal bhairav Puja Vidhi
- कालभैरव जयंती के दिन ब्रह्म मुहूर्त में नित्य क्रियाओं से निवृत्त होकर स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण कर लें।
- लकड़ी के पटिये पर सबसे पहले शिव और पार्वती जी का चित्र स्थापित करके फिर काल भैरव के चित्र को स्थापित करें।
- आचमन करके भगवान को गुलाब का हार पहनाएं अथवा पुष्प चढ़ाएं।
- फिर चौमुखी दीया जलाकर गुग्गल की धूप जला दें।
- हल्दी, कुमकुम से सभी को तिलक लगाए तथा हथेली में गंगाजल लेकर व्रत का संकल्प लें।
- शिव-पार्वती तथा भैरव जी पूजन करके आरती उतारें।
- अब अपने पितरों को याद करके उनका श्राद्ध करें।
- व्रत के पूर्ण होने के बाद काले कुत्ते को मीठी रोटी या कच्चा दूध पिलाएं।
- पुन: अर्द्धरात्रि में धूप, काले तिल, दीपक, उड़द और सरसों के तेल से काल भैरव की पूजा करें।
- इस दिन व्रत-उपवास रखकर रात्रि में भजन-कीर्तन करते हु भैरव जी की महिमा गाएं।
- इस दिन शिव चालीसा, भैरव चालीसा तथा मंत्र 'ॐ कालभैरवाय नम: का जाप करें।
काल भैरव जयंती के पूजन मुहूर्त : Kaal bhairav Jayanti Muhurat 2023
मार्गशीर्ष कृष्ण अष्टमी तिथि- 4 दिसंबर 2023, दिन सोमवार को 01.29 पी एम से प्रारंभ होकर 5 दिसंबर, मंगलवार को 04.07 पी एम पर समाप्ति होगी।
बता दें कि हिंदू कैलेंडर के अनुसार इस साल काल भैरव जयंती की शुरुआत 4 दिसंबर, सोमवार को रात 09.59 मिनट से प्रारंभ होकर इसका समापन 05 दिसंबर, मंगलवार को देर रात 12.37 मिनट बताई जा रही है। अत: मतांतर के चलते आज भी कालाष्टमी तथा काल भैरव जयंती का खास पर्व मनाया जा रहा है।
काल भैरव की कथा- काल भैरव का आविर्भाव मार्गशीर्ष कृष्ण अष्टमी को प्रदोष काल में हुआ था। शिव पुराण के अनुसार, अंधकासुर नामक दैत्य के संहार के कारण भगवान शिव के रुधिर से भैरव की उत्पत्ति हुई थी।
अन्य एक कथा के अनुसार एक बार जगत के सृष्टिकर्ता ब्रह्मा जी ने शिव तथा उन के गणों की रूपसज्जा को देख कर अपमान जनक वचन कहे। परंतु भगवान शिव ने उस वचन पर कोई ध्यान नहीं दिया, परंतु शिव के शरीर से एक प्रचंड काया का प्राकट्य हुआ तथा वो ब्रह्मा जी को मारने हेतु उद्धत हो आगे बढ़ा, जिसके परिणामस्वरूप ब्रह्मा जी अत्यंत भयभीत हो गए।
अंततः शिव जी द्वारा मध्यस्थता करने के कारण वो क्रोधित तथा विकराल रूप वाला गण शांत हुआ। तदनंतर, भगवान शिव ने उस गण को अपने आराधना स्थल काशी का द्वारपाल नियुक्त कर दिया। भगवान शिव के पांचवें अवतार भैरव को भैरवनाथ भी कहा जाता है।