अक्षय तृतीया की शुभता एवं महत्ता

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ग्रीष्म ऋतु का आगमन लहराती फसल से लोगों में खुशी का संचार कर होता है। इसके साथ ही विभिन्न व्रत-पर्वों के की भी दस्तक सुनाई देने लगती है। धर्म व मानव मूल्यों की रक्षा हेतु श्री हरि विष्णु देशकाल के अनुसार अनेक रूपों को धारण करते हैं। जिसमें भगवान परशुराम, नर-नारायण, हयग्रीव(?) के तीन पवित्र व शुभ अवतार अक्षय तृतीया को उदय हुए। मानव कल्याण की इच्छा से धर्म शास्त्रों में पुण्य शुभ पर्व की कथाओं की आवृत्ति हुई है। जिसमें अक्षय तृतीया का व्रत भी प्रमुख है जो अपने आप में स्वयंसिद्ध है।

अक्षय तृतीया में सतयुग किन्तु कल्पभेद से त्रेतायुग की शुरूआत होने से इसे युगादि तिथि भी कहा जाता है। वैशाख मास में भगवान भास्कर की तेज धूप तथा प्रचंड गर्मी से प्रत्येक जीवधारी भूख-प्यास से व्याकुल हो उठता है इसलिए इस तिथि में शीतल जल, कलश, चावल, चने, दूध, दही, खाद्य व पेय पदार्थो सहित वस्त्राभूषणों का दान अक्षय व अमिट पुण्यकारी माना गया है।

सुख, शांति, सौभाग्य तथा समृद्धि हेतु इस दिन शिव-पार्वती और नर-नारायण के पूजन का विधान है। इस दिन श्रद्धा विश्वास के साथ व्रत रख जो प्राणी गंगा जमुनादि तीर्थो में स्नान कर अपनी शक्तिनुसार देवस्थल व घर में ब्राह्मणों द्धारा यज्ञ, होम, देव-पितृ तर्पण, जप, दानादि शुभ कर्म करते हैं उन्हें उन्नत व अक्षय फल की प्राप्ति होती है।

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तृतीया तिथि माँ गौरी की तिथि है जो बल-बुद्धि वर्धक मानी गई है। अतः सुखद गृहस्थ की कामना से जो भी विवाहित स्त्री-पुरुष इस दिन माँ गौरी व सम्पूर्ण शिव परिवार की पूजा करते हैं उनके सौभाग्य में वृद्धि होती है। यदि अविवाहित इस दिन श्रद्धा-विश्वास से प्रभु शिव व माता गौरी को परिवार सहित शास्त्रीय विधि से पूजते हैं, उन्हें सफल व सुखद वैवाहिक सूत्र में जुड़ने का पवित्र अवसर मिलता है। वैशाख मास की शुक्ल पक्ष की तृतीया के दिन रविवार 16 मई 2010 को अक्षय तृतीया में पूजा, जप-तप, दान, स्नानादि शुभ कार्यो का विशेष महत्व तथा फल रहेगा।

इस तिथि का जहाँ धार्मिक महत्व है वहीं यह तिथि व्यापारिक रौनक बढ़ाने वाली भी मानी गई है। इस दिन स्वर्णादि आभूषणों की खरीद फरोख्त को बहुत ही शुभ माना जाता है। जिससे आभूषण निर्माता व विक्रेता अपने प्रतिष्ठानों को बड़े ही सुन्दर ढंग से सजाते हैं। अक्षय तृतीया के दिन बाजारों की रौनक बढ़ जाती है।

इसी दिन श्री बद्रीनारायण धाम के पट खुलते हैं श्रद्धालु भक्त प्रभु की अर्चना-वंदना करते हुए विविध नैवेद्य अर्पित करते हैं। अक्षय तृतीया सुख-शांति व सौभाग्य में निरन्तर वृद्धि करने वाली है। इस परम शुभ अवसर का जैसा नाम वैसा काम भी है अर्थात्‌ अक्षय जो कभी क्षय यानी नष्ट न हो, ऐसी युगादि तिथि में किए गए शुभ व धर्म कार्य वृद्धिदायक व अक्षय रहते हैं। दुर्भाग्य का अंत होता है।

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