लगभग 1200 वर्ष पहले इन लोगों को ईरान से धार्मिक अत्याचारों से बचने के लिए भागना पड़ा था, क्योंकि ईरान के शासक और लोग अन्य धर्म को मानते थे। ईरान से आकर इन लोगों ने भारत में शरण ली। यहां आकर ये लोग गुजरात राज्य और बंबई में बस गए।
नवरोज प्रतिवर्ष 21 मार्च को मनाया जाता है। असल में पारसियों का केवल एक पंथ-फासली-ही नववर्ष मानता है, मगर सभी पारसी इस त्योहार में सम्मिलित होकर इसे बड़े उल्लास से मनाते हैं, एक-दूसरे को शुभकामनाएं देते हैं और अग्नि मंदिरों में जाकर पूजा-अर्चना करते हैं। 21 मार्च वसंत का पहला दिन होता है, जब सूर्य विषुवत् रेखा पर पहुंचता है और दिन-रात बराबर होते हैं।
इन दिनों अशोक वृक्ष फूलता है और आम के पेड़ों पर मौर आने लगते हैं। पतझड़ में जिन पेड़ों के पत्ते झड़ चुके होते हैं, उन पर वसंत ऋतु में नई-नई कोंपलें निकलने लगती हैं। सारे गांव-देहात हरियाली का नया बाना धारण करके ऐसे लगते हैं जैसे उनका नया जन्म हुआ हो।