वह रोज उनसे धार्मिक ग्रंथ अवेस्ता में संकलित परमेश्वर अहूरा मज्दा के सत्य को सुनने-समझने लगा। जल्द ही वह उन्हें दरबार में अपने समीप बिठाकर उनसे राजकाज में रायशुमारी करने लगा। यह विशेष सम्मान मिलने पर कई दरबारी जरथुस्त्र से जलने लगे। वे अकसर उनके विरुद्ध राजा के कान भी भरते, लेकिन राजा उनकी बातों पर ध्यान नहीं देता था।
तब उन्होंने जरथुस्त्र के कक्ष में मानव खोपड़ी आदि रखकर उन पर जादू-टोना करने का आरोप लगा दिया। साथ ही राजा से यह भी कहा कि आप भी इसके जादू के वशीभूत होकर ही हमारी बातों पर ध्यान नहीं देते। राजा को पहले तो उनकी बातों पर यकीन नहीं हुआ, लेकिन कक्ष से बरामद सामान को देखकर उसने जरथुस्त्र को जेल में डलवा दिया।
इससे घोड़े की दो और टांगे ठीक हो गईं। अंत में उन्होंने अपने कक्ष के दरबान को बुलाकर दरबारियों की पोल खुलवाई। सच जानकर गुस्से में आए राजा ने जैसे ही दोषी दरबारियों को देश-निकाले का आदेश दिया, घोड़ा चारों टांगों पर खड़ा हो गया।