यह उन एसएमएस में से एक उदाहरण है जो सिंधी परिवारों ने चेटीचंड की बधाइयां देने के लिए एक-दूसरे को भेजेंगे।
चेटीचंड पर्व की शुरुआत सुबह टिकाणे (मंदिरों) के दर्शन व बुजुर्गों के आशीर्वाद से होती है।
ऐसे लोग जिनकी मन्नत-मुराद पूरी हुई, वे बाराणे (आटे की लोई में मिश्री, सिन्दूर व लौंग) व आटे के दीए बनाकर पूजा करके उसके बाद उसे जल में प्रवाहित करते है। इसका प्रयोजन मुराद पूरी होने पर ईश्वर के प्रति आभार के साथ ही जल-जीवों के भोजन की व्यवस्था करना भी है।
इस दिन नवजात शिशुओं का मंदिरों में मुंडन भी कराया जाता है। दिन भर पूजा-अर्चना के बाद शाम होते-होते लोग शोभायात्रा में शामिल होने या अपने-अपने अंदाज से चेटीचंड मनाने निकल पड़े थे। यह सिलसिला देर रात तक जारी रहता है।