रवि 3 लाख से ज्यादा वोटों से जीते थे पिछला चुनाव : रवि किशन ने पिछला चुनाव 3 लाख 1 हजार 664 मतों जीता था। तब उन्होंने सपा के रामभुआल निषाद को पराजित किया था। पिछली बार कांग्रेस ने भी अपना उम्मीदवार उतारा था, लेकिन उसे करीब 23 हजार वोट ही मिल पाए थे। सपा उम्मीदवार काजल निषाद कई टीवी सीरियल्स में काम कर चुकी हैं। 2018 में योगी आदित्यनाथ के इस्तीफे के बाद हुए उपचुनाव में भाजपा को हार का सामना करना पड़ा था। तब सपा के प्रवीण कुमार निषाद बहुत कम अंतर (21,801) से चुनाव जीते थे। हालांकि रवि किशन योगी आदित्यनाथ का रिकॉर्ड नहीं तोड़ पाए। 2014 में योगी इस सीट पर 3 लाख 12 हजार 783 वोटों से चुनाव जीते थे।
मंदिर की सीट : दूसरी ओर, सांसद रवि किशन खुद को गोरक्षपीठ का सेवक बताकर यह कहने से नहीं चूकते हैं कि वह मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के मार्गदर्शन में ही चुनाव लड़ रहे हैं। योगी भी उनके समर्थन में रैलियां कर चुके हैं। रवि यह भी कहते हैं कि यह मंदिर की सीट है और मंदिर की ही रहेगी।
जातीय समीकरण : इस सीट पर सबसे ज्यादा निषाद मतदाता हैं, जिनकी संख्या 4.5 लाख से ज्यादा है, जबकि 2.25 लाख के आसपास यादव मतदाता हैं। डेढ़ लाख के लगभग यहां मुस्लिम मतदाता हैं। यदि निषाद, यादव और मुस्लिम वोटर काजल के पक्ष में एकजुट होते हैं, तो वे परिणाम को पलट भी सकती हैं। हालांकि निषाद पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष संजय निषाद एनडीए खेमे में हैं, इसका फायदा रवि किशन को मिल सकता है। यहां 3 लाख से ज्यादा ब्राह्मण और राजपूत मतदाता हैं, जबकि 1 लाख के करीब यहां भूमिहार और वैश्य हैं। हालांकि इस सीट पर मठ का समीकरण अन्य सभी जातीय समीकरणों पर भारी रहता है।
योगी सर्वाधिक 5 बार रहे सांसद : गोरखपुर लोकसभा सीट पर शुरुआती तीन चुनावों (1952, 57, 67) तक कांग्रेस का कब्जा रहा। हालांकि सबसे ज्यादा बार सांसद गोरखनाथ मठ से ही बने हैं। 1967 में गोरखनाथ मठ के महंत दिग्विजयनाथ स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप सांसद बने। दिग्विजयनाथ के निधन के बाद 1970 में हुए उपचुनाव में उनके उत्तराधिकारी महंत अवैद्यनाथ निर्दलीय सांसद बने। 1989 में अवैद्यनाथ एक बार फिर सांसद बने, लेकिन इस बार वे हिन्दू महासभा के टिकट पर चुनाव जीते थे। 1991 और 1996 में वे भाजपा के टिकट पर सांसद बने। 1998 से 2017 तक योगी आदित्यनाथ इस सीट से सांसद रहे, जो कि इस सीट पर सबसे लंबा कार्यकाल है। 1989 से 2017 तक (करीब 28 साल) लगातार इस सीट पर मठ का ही कब्जा रहा है।
कई बार बदला जा चुका है गोरखपुर का नाम : गोरखपुर के इतिहास पर नजर डालें तो इस शहर का नाम यूं तो गुरु गोरखनाथ के नाम पर ही है, लेकिन 2600 सालों में इस शहर का नाम करीब 8 बार बदला जा चुका है। गोरखपुर नाम करीब 220 साल पुराना है। नौवीं सदी में इसे गोरक्षपुर के नाम से जाना जाता था। औरंगजेब के काल में इस शहर का नाम मोअज्जमाबाद था। औरंगजेब के बेटे का नाम मुअज्जम था। प्राचीन काल में इसे रामग्राम के नाम से भी जाना जाता था। चंद्रगुप्त मौर्य के शासनकाल इस क्षेत्र को पिप्पलिवन कहा जाता था। सूब-ए-सर्किया और अख्तरनगर के नाम से जाना जाता रहा है यह शहर। हालांकि अंग्रेजों के जमाने में इसे गोरखपुर कहा जाने लगा।