Kaushambi Lok Sabha Seat: कौशाम्बी लोकसभा सीट पर सत्तारूढ़ दल के वर्तमान सांसद व भाजपा प्रत्याशी विनोद सोनकर और प्रमुख प्रतिद्वंद्वी समाजवादी पार्टी प्रत्याशी पुष्पेंद्र सरोज दोनों की ही इस चुनावी जंग में नींद उड़ी हुई है। दरअसल, जनसत्ता दल के मुखिया और कुंडा से विधायक रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भैया के रुख ने दोनों ही दलों के उम्मीदवारों को बेचैन कर दिया है। क्योंकि दोनों ही दलों के नेता राजा भैया से समर्थन मांगने पहुंचे थे। लेकिन, राजा भैया के तटस्थ रुख से दोनों ही दल परेशान हैं। ALSO READ: कैसरगंज में करण भूषण को पिता बृजभूषण के दबदबे पर भरोसा, सपा से मिलेगी टक्कर
क्या है राजा भैया का रुख : बताया जाता है कि पिछले दिनों राजा भैया केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह से मुलाकात की थी। इसके बाद स्थानीय राजनीति में खलबली मचना स्वाभाविक था। आनन-फानन में सपा प्रत्याशी पुष्पेंद्र सरोज ने राजा भैया के बेती राजमहल पहुंचकर अपने लिए समर्थन मांगा। इसके बाद इसी दिन दोपहर में भाजपा प्रत्याशी विनोद सोनकर केंद्रीय मंत्री संजीव बालियान के साथ उनके आवास पर पहुंच गए। हालांकि दोनों पक्षों के बीच क्या बात हुई, इसका खुलासा नहीं हुआ। लेकिन, इसके बाद राजा भैया ने कौशांबी के अपने समर्थकों के साथ बैठक की। बैठक में हुई चर्चा के अनुरूप राजा भैया ने यह घोषणा कर दी की जनसत्ता दल प्रतापगढ़ व कौशाम्बी मे किसी भी पार्टी का समर्थन नहीं करेगा। उन्होंने कहा कि इन लोकसभा क्षेत्र के लोग योग्य उम्मीदवार का चुनाव करने के लिए स्वतंत्र है। राजा भैया के इसी घोषणा के बाद से कौशाम्बी लोकसभा क्षेत्र के भाजपा व सपा के प्रत्याशी विचलित है। ALSO READ: क्या फैजाबाद सीट पर हैट्रिक लगा पाएंगे BJP सांसद लल्लू सिंह?
कौशांबी में कड़ी टक्कर : इस बार कौशांबी में कड़ी टक्कर देखने को मिल सकती है। क्योंकि पिछली बार सपा और कांग्रेस ने अलग-अलग उम्मीदवार उतारे थे, लेकिन इस बार सपा उम्मीदवार सरोज को कांग्रेस का समर्थन हासिल है। बसपा ने शुभनारायण को टिकट दिया है। जनसत्ता दल ने इस बार उम्मीदवार नहीं उतारा है। राजा भैया ने जनसत्ता दल लोकतांत्रिक का गठन 2018 में किया था और इसके बैनर तले पहला चुनाव 2019 में लड़ा था। पार्टी ने अक्षय प्रताप सिंह को प्रतापगढ़ से एवं कौशांबी से शैलेन्द्र कुमार को उम्मीदवार बनाया था। हालांकि दोनों उम्मीदवार हार गए थे, लेकिन शैलेन्द्र को 1 लाख 56 हजार वोट मिले थे, जबकि अक्षय प्रताप को करीब 47 हजार वोट मिले थे। ऐसे में राजा भैया के इन क्षेत्रों में प्रभाव से इंकार नहीं किया जा सकता। कौशांबी में पिछली बार जनसत्ता दल को मिले वोट यदि किसी एक पार्टी के पक्ष में पड़ जाते हैं, तो उसका जीतना सौ फीसदी तय है। ALSO READ: काराकाट में पवन सिंह ने बढ़ाई NDA की मुश्किल, मुकाबला हुआ त्रिकोणीय
क्या कहते हैं प्रतापगढ़ के मतदाता : चंदन सिंह के कहा कि राजा भैया का क्षेत्र में प्रभाव है, जिसके चलते असर तो जरूर पड़ेगा। अब असर कितना किस पर पड़ेगा यह तो बाद में पता चलेगा, किन्तु दोनों पार्टी डैमेज कंट्रोल करने में लगी हैं। राजीव ने बताया कि विधायक जी की बात का वजन होता है। जाहिर सी बात है कि उनकी उस घोषणा का प्रभाव भी जरूर पड़ेगा। उन्होंने कहा कि जो भी लोग राजा भैया से जुड़े हैं कि वे लगाव की वजह से जुड़े हैं न कि किसी दबाव से।
अश्विनी श्रीवास्तव ने कहा कि राजा अपने समर्थकों को बहुत मानते हैं। उनके दुख-सुख के साथी हैं। ऐसे में एक बात तो निश्चित है कि जहां राजा भैया हैं, वहीं उनके समर्थक भी हैं। रमेश तिवारी ने बताया की यहां सीधा मुकाबला सपा भाजपा के बीच है और दोनों पर राजा भैया के रुख का असर पड़ेगा। सबसे बड़ी बात आज का वोटर जागरूक है, वह वही करता है जो उसका मन करता है। लेकिन, इनका प्रभाव पड़ेगा जरूर, राजनीति में कब क्या हो कुछ नहीं कहा जा सकता है। वहीं, अमितेन्द्र ने बताया की जाहिर सी बात है कि विधायक राजा भैया का उत्तर प्रदेश मे बड़ा वजूद है। इसलिए उनके इस बयान का मतदान पर असर जरूर पड़ेगा।
अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित कौशांबी लोकसभा सीट का गठन 2008 के परिसीमन में हुआ था। इससे पहले यह सीट चायल लोकसभा सीट के नाम से जानी जाती थी। इस लोकसभा में प्रतापगढ़ जिले की दो विधानसभा सीटें हैं, जबकि 3 कौशांबी जिले की हैं। प्रतापगढ़ जिले की दोनों सीटों- कुंडा और बाबागंज में जनसत्ता दल का कब्जा है, जबकि सिराथू, मंझनपुर और चायल में सपा का कब्जा है। सिराथू से विधायक पल्लवी पटेल ने राज्य के डिप्टी सीएम केशव प्रसाद को हराया था।
करीब 16 लाख मतदाता करेंगे फैसला : कौशांबी लोकसभा सीट पर मतदाताओं की संख्या 15 लाख 99 हजार 596 है। इनमें पुरुषों की संख्या 8 लाख 38 हजार 485 व महिलाओ की संख्या 7 लाख 61 हजार 111 है। यहां 85 फीसदी मतदाता हिन्दू हैं और 13 प्रतिशत मुस्लिम मतदाता हैं। 2009 से अस्तित्व में आई इस लोकसभा सीट पर पहला चुनाव समाजवादी पार्टी के शैलेन्द्र कुमार ने जीता था। इसके बाद 2014 और 2019 में भाजपा के विनोद कुमार सोनकर विजयी हुए थे। हालांकि दोनों ही चुनावों में उनकी जीत का अंतर 50 हजार के भीतर ही था।
क्या है कौशांबी सीट का इतिहास : 2009 से पहले यह लोकसभा सीट चायल के नाम से जानी जाती थी। इस सीट पर सर्वाधिक 5 बार कांग्रेस उम्मीदवार ने जीत हासिल की है। कांग्रेस 1989 में आखिरी बार चुनाव जीती थी, इसके बाद कभी उसकी वापसी नहीं हुई। तीन बार यहां से समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार जीत चुके हैं। एक-एक बार बसपा और जनता के प्रत्याशी भी यहां से चुनाव जीते हैं। भाजपा यहां से तीन बार चुनाव जीत चुकी है। वर्तमान में इस सीट पर भाजपा का सांसद है।