Maha Kumbh katha: हर 12 साल में एक बार कुंभ में लेकर आयोजन होता है इस बार कुंभ का आयोजन प्रयागराज में हो रहा है जहां त्रिवेणी के संगम पर लाखों श्रद्धालु पवित्र संगम में डुबकी लगाकर पुण्य की प्राप्ति करेंगे । लेकिन क्या आप जानते हैं धरती पर कुंभ के आयोजन का श्रेय चंद्रमा को जाता है जिनकी एक गलती के कारण ऐसा हुआ । आज हम आपको कुंभ से जुड़ी एक रोचक कहानी के बारे में इस लेख में बताने जा रहे हैं। जानिए चंद्रमा की किस गलती के कारण धरती पर कुंभ मेला लगता है।
अमृत मंथन और चंद्रमा की भूमिका
कुंभ मेले की उत्पत्ति का सीधा संबंध समुद्र मंथन से है। देवताओं और असुरों ने मिलकर समुद्र मंथन किया था, जिससे अमृत निकला था। इस अमृत को पाने के लिए देवताओं और असुरों में युद्ध छिड़ गया था। अमृत कलश को लाने की जिम्मेदारी सूर्य, चंद्रमा, गुरु और शनि को दी गई थी। चंद्रमा अमृत कलश को संभालते समय थोड़ा सा अमृत पी गए।
अमृत की बूंदें और चार धाम
चंद्रमा ने जब अमृत पिया तो कुछ बूंदें उनके मुंह से गिर गईं। ये बूंदें धरती पर चार स्थानों पर गिरीं: प्रयागराज, हरिद्वार, नासिक और उज्जैन। मान्यता है कि इन स्थानों पर जहां-जहां अमृत की बूंदें गिरीं, वहां पवित्र नदियां बहने लगीं और ये स्थान पवित्र हो गए। इन स्थानों पर स्नान करने से मनुष्य के सभी पाप धुल जाते हैं और उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है।
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इन्हीं चार स्थानों पर कुंभ मेला आयोजित किया जाता है। मान्यता है कि कुंभ मेले के दौरान इन स्थानों पर स्नान करने से व्यक्ति को अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है। कुंभ मेला सिर्फ एक धार्मिक आयोजन ही नहीं है, बल्कि यह भारतीय संस्कृति और सभ्यता का प्रतीक है। यह मेला लाखों लोगों को एक साथ लाता है और सामाजिक एकता का प्रतीक है।
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