चौधरी चरणसिंह : गांव, गरीब और किसानों की आवाज

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गांव, गरीब और किसान के शोषण के खिलाफ आवाज बुलंद करने वाले चौधरी चरणसिंह खुद को प्रधानमंत्री से ज्यादा एक किसान व सामाजिक कार्यकर्ता मानते थे। किसानों के हित में उनकी कोशिशों की सदैव सराहना हुई। भारत के पांचवें प्रधानमंत्री चरणसिंह की व्यक्तिगत छवि एक ऐसे देहाती पुरुष की थी, जो सादा जीवन और उच्च विचार में विश्वास रखता था। भूमि हदबंदी कानून उनके कार्यकाल की प्रमुख‍ विशेषता है।
 
प्रारंभिक जीवन : इनका जन्म 23 दिसंबर 1902 को ग्राम नूरपुर जिला मेरठ (उत्तरप्रदेश) में हुआ था। जाट पृष्ठभूमि से आने वाले चरणसिंह के पूर्वज नाहरसिंह ने 1857 की प्रथम क्रांति में भाग लिया था। नाहरसिंह वल्लभगढ़ के निवासी थे, जो कि वर्तमान में हरियाणा में आता है।
 
राजनीतिक जीवन : आजादी के पूर्व उप्र में छत्रवाली विधानसभा सीट से चौधरी ने 9 वर्ष तक क्षेत्रीय जनता का प्रतिनिधित्व किया। देश की आजादी के बाद 1952, 1962 और 1967 में हुए राज्य विधानसभा चुनावों में पुन: चुने गए। डॉ. संपूर्णानंद के मुख्यमंत्रित्वकाल में 1952 में उन्हें राजस्व तथा कृषि विभाग का दायित्व सौंपा गया। 1960 में चंद्रभानु गुप्ता की सरकार में उन्हें गृह तथा कृषि मंत्रालय दिया गया। ये कांग्रेस और लोकदल के प्रमुख नेता थे।
 
1977 में प्रधानमंत्री बने : आपातकाल खत्म होने के बाद 1977 के आम चुनाव के बाद केंद्र में जनता पार्टी सत्ता में आई तो जयप्रकाश नारायण के सहयोग से मोरारजी देसाई प्रधानमंत्री बने थे और चरणसिंह को देश का गृहमंत्री बनाया गया। बाद में मोरारजी और चरणसिंह के मतभेद खुलकर सामने आए तब चरणसिंह 28 जुलाई 1979 को समाजवादी पार्टियों तथा कांग्रेस (यू) के सहयोग से प्रधानमंत्री पद पाने में सफल हुए। प्रधानमंत्री बनने के बाद इन्होंने किसानों व आम जनता के हित में कई कदम उठाए। चरणसिंह 28 जुलाई 1979 से 14 जनवरी 1980 तक देश के प्रधानमंत्री रहे।
 
विशेष : उनका ध्येय वाक्य था कि भारत के समस्त किसान आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर हों। उनके दिल में किसानों के प्रति काफी हमदर्दी थी। उनकी प्रसिद्ध रचनाएं हैं- 'अबॉलिशन ऑफ जमींदारी', 'भारत की भयावह आर्थिक स्थिति, इसके कारण और निदान', 'लीजेंड प्रोपराइटरशिप' और 'इंडियास पॉवर्टी एंड इट्स सोल्यूशंस'। वे हिन्दी, अंग्रेजी के साथ ही उर्दू के भी अच्छे जानकार थे।

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