पिंक सिटी में किसको मिलेगा पॉवर? जानिए जयपुर की 9 विधानसभा सीटों का हाल

Rajasthan Assembly Elections 2023: राजस्थान की राजधानी जयपुर दो संसदीय सीटों- जयपुर शहर और जयपुर ग्रामीण में बंटा हुआ है। विधानसभा चुनाव में पिंक सिटी में गहलोत सरकार के मंत्रियों के साथ ही वर्तमान विधायकों की प्रतिष्ठा भी दांव पर है। वहीं, जयपुर राजघराने की ‍दीया कुमारी और भाजपा सांसद कर्नल राज्यवर्धन सिंह राठौड़ मौजूदगी से चुनावी पंडितों की नजरें भी जयपुर पर टिकी हुई हैं। राज्य में सरकार किसकी बनेगी यह तो 3 दिसंबर को पता चलेगा, लेकिन अभी हम जयपुर की कुछ प्रमुख सीटों पर नजर डालेंगे। 
 
विद्याधर नगर विधानसभा सीट : राजस्थान की सबसे हॉट सीटों में विद्याधर नगर का भी नाम है, जहां से जयपुर राजघराने की  पूर्व राजकुमारी दीया कुमारी मैदान में हैं। दीया वर्तमान में राजसमंद लोकसभा सीट से सांसद हैं। वे सवाई माधोपुर से भी एक बार विधायक रह चुकी हैं। कांग्रेस ने यहां से एक बार फिर सीताराम अग्रवाल को उम्मीदवार बनाया है। वर्तमान में यह सीट भाजपा के ही पास है। पूर्व मुख्‍यमंत्री स्व. भैरोंसिंह शेखावत के दामाद नरपत सिंह राजवी इस सीट से विधायक हैं। उन्हें इस बार चित्तौड़गढ़ से उम्मीदवार बनाया गया है। 
 
पत्रकार मुकेश बींवाल बताते हैं कि यह सीट परंपरागत रूप से भाजपा की रही है। दीया कुमारी की उम्मीदवारी के बाद शुरुआत में यहां मुकाबला एकतरफा दिखाई दे रहा था, लेकिन अब थोड़ी टक्कर दिखाई दे रही है। चूंकि यह सीट लंबे समय से भाजपा के पास है, ऐसे में फैसला दीया कुमारी के हक में ही जाएगा। क्योंकि सीताराम अग्रवाल पिछला चुनाव करीब 32 हजार वोटों से हारे थे। हालांकि उस समय कांग्रेस के बागी विक्रम सिंह भी मैदान में थे। 2008 से यहां राजवी विधायक हैं।
सिविल लाइन विधानसभा सीट : राजधानी की सिविल लाइन सीट पर गहलोत सरकार के मंत्री और कांग्रेस के कद्दावर नेता प्रताप सिंह खाचरियावास मैदान में हैं, जबकि भाजपा ने अपने पूर्व विधायक एवं पूर्व प्रदेश अध्यक्ष अरुण चतुर्वेदी का टिकट काटकर पत्रकार गोपाल शर्मा को उम्मीदवार बनाया है। बींवाल कहते हैं कि गोपाल शर्मा राज्य के पूर्व मुख्‍यमंत्री भैरोंसिंह शेखावत के काफी करीब रहे हैं। अमित शाह से भी उनके संबंध अच्छे हैं। साथ ही संघ से भी जुड़े रहे हैं। खाचरियावास ने पिछले चुनाव में चतुर्वेदी को 18000 से ज्यादा वोटों से हराया था। 
 
गोपाल शर्मा अयोध्या की रिपोर्टिंग के चलते काफी चर्चा में आए थे। उन्होंने 'कार सेवा से कार सेवा तक' एक पुस्तक भी लिखी है। खाचरियावास 2008 में भी इस सीट से विधायक रहे हैं, लेकिन 2013 में चुनाव हार गए थे। यदि मतदाता बदलाव के मूड में रहता है तो खाचरियावास को इस सीट पर मुश्किल हो सकती है।      
 
हवामहल विधानसभा सीट : कांग्रेस ने अपने कद्दावर नेता और विधायक महेश जोशी का टिकट काटकर आरआर तिवाड़ी को उम्मीदवार बनाया है, जबकि भाजपा ने हाथोज मंदिर के महंत बालमुकुंदाचार्य को मैदान में उतारा है। पिछले रिकॉर्ड पर नजर डालें तो इस सीट पर ज्यादा समय तक भाजपा का ही कब्जा रहा है। 1980 से 1998 तक यहां भाजपा के भंवर लाल शर्मा लगातार 6 बार विधायक रह चुके हैं।
 
पत्रकार मुकेश कहते हैं कि 2003 से इस सीट पर एक बार भाजपा एवं एक बार कांग्रेस जीत रही है। वे कहते हैं कि महेश जोशी से नाराज कांग्रेस के मुस्लिम नेता पप्पू पप्पु कुरैशी ने आम आदमी पार्टी से टिकट ले लिया था, लेकिन जोशी का टिकट कटने के बाद वे कांग्रेस के समर्थन में आ गए। पप्पू के समर्थन के बाद यहां मुकाबला कांटे का हो गया है। हालांकि दोनों ही उम्मीदवार ब्राह्मण हैं। ऐसे में दूसरी जातियों के वोटरों का रुख बहुत हद तक जीत हार तय करेगा। पलड़ा बालमुकुंदाचार्य का भारी है। 
 
झोटवाड़ा  विधानसभा सीट : पूर्व ओलंपियन और जयपुर ग्रामीण सीट से भाजपा सांसद कर्नल राज्यवर्धन सिंह राठौड़ की उम्मीदवारी झोटवाड़ा सीट को हॉट बना रही है। कांग्रेस ने यहां एनएसयूआई के प्रदेश अध्यक्ष अभिषेक चौधरी को मैदान में उतारा है। वर्तमान में यह सीट कांग्रेस के पास ही है। यहां से पिछले चुनाव में भाजपा के राजपाल सिंह शेखावत को कांग्रेस के लालचंद कटारिया ने हराया था। कटारिया गहलोत सरकार में मंत्री भी हैं। 
 
सेंट्रल स्पाइन व्यापार परिषद के अध्यक्ष मुकेश बींवाल कहते हैं कि भाजपा के बागी आशु सिंह सूरपुरा यहां मुकाबले को त्रिकोणीय बना रहे हैं। वे धरातल से जुड़े नेता हैं और भाजपा से विधानसभा टिकट के दावेदार भी थे। उनकी मौजूदगी राठौड़ की मुश्किलें बढ़ा सकती है। कांग्रेस के अभिषेक युवा तो हैं, लेकिन राठौड़ के मुकाबले अनुभव की कमी है। यह भी कहा जा रहा है कि कटारिया ने स्वेच्छा से चुनाव लड़ने में रुचि नहीं दिखाई थी। कांग्रेस उन्हें जयपुर ग्रामीण सीट से लोकसभा उम्मीदवार बना सकती है। 
आदर्श नगर  विधानसभा सीट : भाजपा ने इस बार अपने कद्दावर नेता पूर्व विधायक और पूर्व प्रदेशाध्यक्ष अशोक परनामी का टिकट काटकर व्यापार मंडल के नेता रवि नैयर को मैदान में उतारा है। दूसरी ओर, कांग्रेस ने वर्तमान विधायक रफीक खान पर ही भरोसा जताया है। रफीक ने 2018 में भाजपा के अशोक परनामी को 12500 से ज्यादा वोटों से हराया था। वहीं, 2013 में इस सीट पर परनामी ने कांग्रेस के माहिर आजाद को करीब 3800 वोटों से हराया था।
 
मुकेश कहते हैं कि रफीक खान से खासकर क्षेत्र का हिन्दू मतदाता नाराज है। ऐसे में वोटो के ध्रुवीकरण का फायदा रवि नैयर को मिल सकता है। रवि साफ-सुथरा चेहरा हैं, लेकिन ‍उनके साथ भितरघात भी हो सकता है। एंटी-इनकमबेंसी का रफीक को नुकसान हो सकता है।  
 
सांगानेर विधानसभा सीट : सांगानेर भाजपा की परंपरागत विधानसभा सीट है। 20 साल से यहां कांग्रेस एक बार भी चुनाव नहीं जीत पाई। पिछले चुनाव में भाजपा के अशोक लाहौटी ने कांग्रेस के पुष्पेन्द्र भारद्वाज को 35 हजार से ज्यादा वोटों से हराया था। कांग्रेस ने पुष्पेन्द्र भारद्वाज पर ही भरोसा जताया है, जबकि भाजपा ने वर्तमान विधायक लाहौटी का टिकट काटकर संगठन से जुड़े भजन लाल शर्मा को उम्मीदवार बनाया है। 
 
मुकेश कहते हैं कि चूंकि सांगानेर सीट भाजपा का गढ़ है, अत: इसका फायदा भजन शर्मा को मिलेगा। इस सीट से घनश्याम तिवाड़ी लगातार चुनाव जीतते रहे हैं, लेकिन पिछले चुनाव में वे बागी उम्मीदवार के रूप में मैदान में थे। उन्हें 17000 वोट ही मिल पाए थे। उनके बागी उम्मीदवार रहने के बावजूद यहां से भाजपा उम्मीदवार बड़े अंतर से चुनाव जीता था। हालांकि पुष्पेन्द्र भारद्वाज पिछले चुनाव में हारने के बावजूद क्षेत्र में काफी सक्रिय रहे हैं। अत: उन्हें हलके में नहीं लिया जा सकता। 
 
किशनपोल  विधानसभा सीट : कांग्रेस ने किशनपोल से वर्तमान विधायक अमीनुद्दीन कागजी को उम्मीदवार बनाया है। कागजी ने 2018 में भाजपा के मोहनलाल गुप्ता को करीब 9 हजार वोटों से हराया था। इस बार भाजपा ने चंद्रमोहन बटवाड़ा को उम्मीदवार बनाया है। हालांकि मोहन लाल गुप्ता 2003 से 2013 तक इस सीट पर विधायक रह चुके हैं। पूर्व मुख्‍यमंत्री स्व. भैरोंसिंह शेखावत भी 1962 और 1967 में जनसंघ के टिकट पर यहां से विधायक रह चुके हैं।
 
यहां से 9 बार भाजपा और जनसंघ जबकि 5 पर कांग्रेस नेता विधायक रह चुके हैं। मुकेश बींवाल कहते हैं कि इस बार कांटे की टक्कर है, लेकिन हिन्दू वोटों का ध्रुवीकरण होता है तो एक बार फिर यह सीट भाजपा की झोली में जा सकती है। 
 
मालवीय नगर  विधानसभा सीट : 2008 में इस विधानसभा सीट के अस्तित्व में आने के बाद से ही भाजपा के कालीचरण सराफ इस सीट से विधायक हैं। 2018 के चुनाव सराफ ने कांग्रेस की डॉ. अर्चना शर्मा को कड़े मुकाबले में करीब 2000 वोटों से हराया था। इस बार भी भाजपा ने सराफ को उम्मीदवार बनाया है, वहीं कांग्रेस की तरफ से अर्चना एक बार फिर उनके सामने हैं। मुकेश कहते हैं कि इस बार भी इस सीट पर कांटे का मुकाबला है। अर्चना कट्‍टर हिन्दूवादी स्व. आचार्य धर्मेन्द्र की बहू हैं। 
 
आमेर  विधानसभा सीट : भाजपा ने आमेर सीट से वर्तमान विधायक और पूर्व प्रदेशाध्यक्ष सतीश पूनिया को एक बार फिर उम्मीदवार बनाया है, वहीं कांग्रेस ने भी प्रशांत शर्मा को ही दोहराया है। पिछले चुनाव में पूनिया ने प्रशांत को 12000 से ज्यादा वोटों से हराया था। 
 
मुकेश कहते हैं कि इस सीट पर जाट और ब्राह्मण मतदाता बड़ी संख्या में है। 1993 के बाद पहली बार 2018 में भाजपा इस सीट पर जीती है। इतना ही नहीं पूनिया इस सीट के बजाय झोटवाड़ा सीट से टिकट मांग रहे थे, लेकिन वहां पार्टी ने राज्यवर्धन राठौड़ को टिकट दे दिया। वहीं, बसपा के मुकेश शर्मा कांग्रेस उम्मीदवार प्रशांत शर्मा की मुश्किल बढ़ाएंगे क्योंकि ब्राह्मण वोट बंट जाएगा। कुल मिलाकर इस सीट पर अच्छी टक्कर देखने को मिल सकती है। 

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