बीसवां रोजा दरअसल मगफिरत (मोक्ष) के अशरे (कालखंड) की आख़िरी कड़ी है। जैसा कि पहले भी बयान किया जा चुका है कि ग्यारहवें रोज़े से शुरू होकर बीसवें रोज़े तक की बीच के दस दिनों की रोजादार की परहेज़गारी, इबादत, तिलावते-कुरआन (कुरआन का पठन-पाठन) और तक़्वा (पवित्र आचरण) के साथ अल्लाह की फ़र्मांबरदारी (आदेश मानना) ही मगफिरत (मोक्ष) की रोशनी का मुस्तहिक (अधिकारी/पात्र) बनाती है।