इन पाकीजा आयतों की रोशनी में रमजान के इस आखिरी अशरे (अंतिम कालखंड) और खास तौर से चौबीसवें रोजे की फजीलत को (महिमा को) अच्छी तरह समझा जा सकता है। इस आयत में दुनियावी जिंदगी यानी नफ्सी ख्वाहिशात (क्रोध, माया, मान, लोभ जिन्हें जैन धर्म में कषाय कहा जाता है और ईसाई धर्म में मटेरियलिस्टिक डिजायर्स) को छोड़ने और आखिरत से रिश्ता जोड़ने की बात कही गई है।
आखिरत से मुराद (आशय) दरअसल पारलौकिक यानी भविष्य की स्थिति से है। मतलब यह हुआ कि दुनियावी जिंदगी के बाद यानी मरणोपरांत की स्थिति ही आखिरत है। यहां दो सवाल हैं। एक तो आखिरत से रिश्ता क्यों जोड़ें? दूसरा, आखिरत से रिश्ता कैसे जोड़ा जाए?