मिसाल के तौर पर सनातन धर्म (मज़हब) में भगवती जागरण/ नवरात्रि जागरण/ जैन धर्म में ख़ास यानी विशिष्ट तप-आराधना (इबादत), सिख धर्म में एक ओंकार सतनाम का जाप, ईसाई मज़हब में भी स्पिरिचुअल नाइट्स फॉर स्पिरिचुअल अवेकनिंग एंड अवेयरनेस के अपने लम्हात होते हैं जो हॉली फास्टिंग या पायस मोमेन्ट्स से जुड़े रहते हैं।
दरअसल दोज़ख़ की आग से निजात का यह अशरा (जिसमें रात में की गई इबादत की खास अहमियत है) इक्कीसवीं रात (जब बीसवां रोज़ा इफ्तार लिया जाता है) से ही शुरू हो जाता है। वैसे इस अशरे में जैसा कि पहले कहा जा चुका है दस रातें-दस दिन होते हैं, मगर उन्तीसवें रोज़े वाली शाम को ही चांद नजर आ जाए तो नौ रातें-नौ दिन होते हैं। इस अशरे में इक्कीसवीं रात जिसे ताक़ (विषम) रात कहते हैं नमाज़ी (आराधक) एतेक़ाफ़ (मस्जिद में रहकर विशेष आराधना) करता है।