Eid ul Fitr 2024: ईद का त्योहार भाईचारे और सौहार्द का प्रतीक है। ईद उल फितर अल्लाह का रोजेदारों को तोहफे वाला दिन माना जाता है, क्योंकि ईद मन्नतें पूरी होने का दिन माना गया है। आजल 11 अप्रैल 2024, दिन गुरुवार को भारत में ईद-उल-फित्र/ ईद उल फितर का त्योहार धूमधाम से मनाया जा रहा है।
'ईद-उल-फित्र' दरअसल दो शब्द हैं। 'ईद' और 'फित्र'। असल में 'ईद' के साथ 'फित्र' को जोड़े जाने का एक खास मकसद है। वह मकसद है रमजान में जरूरी की गई रुकावटों को खत्म करने का ऐलान। यह नहीं कि पैसे वाले, धन-संपन्न लोगों ने बहुत उत्साहपूर्वक यह त्योहार मना लिया और गरीब, असहाय लोग मुंह देखते रह गए। साथ ही छोटे-बड़े, अमीर-गरीब सबकी ईद हो जाना। शब्द 'फित्र' के मायने चीरने, चाक करने के हैं और ईद-उल-फित्र उन तमाम रुकावटों को भी चाक कर देती है, जो रमजान में लगा दी गई थीं।
जैसे रमजान में दिन के समय खाना-पीना व अन्य कई बातों से रोक दिया जाता है। ईद के बाद आप सामान्य दिनों की तरह दिन में खा-पी सकते हैं। गोया ईद-उल-फित्र इस बात का ऐलान है कि अल्लाह की तरफ से जो पाबंदियां माहे-रमजान में तुम पर लगाई गई थीं, वे अब खत्म की जाती हैं। इसी फित्र से 'फित्रा' बना है। फित्रा यानी वह रकम जो खाते-पीते, साधन संपन्न घरानों के लोग आर्थिक रूप से कमजोर लोगों को देते हैं। ईद की नमाज से पहले इसका अदा करना जरूरी होता है। इस तरह अमीर के साथ ही गरीब की, साधन संपन्न के साथ साधनविहीन की ईद भी मन जाती है।
कुराने-पाक के अनुसार/ किताबों में आया है कि रमजान में पूरे रोजे रखने वाले का तोहफा ईद है। इस दिन अल्लाह की रहमत पूरे जोश पर होती है तथा अपना हुक्म पूरा करने वाले बंदों को रहमतों की बारिश से भिगो देती है। अल्लाह पाक रमजान की इबादतों के बदले अपने नेक बंदों को बख्शे जाने का ऐलान फरमा देते हैं। असल में ईद से पहले यानी रमजान में जकात अदा करने की परंपरा है।
यह जकात भी गरीबों, बेवाओं व यतीमों को दी जाती है। इसके साथ फित्रे की रकम भी उन्हीं का हिस्सा है। इस सबके पीछे सोच यही है कि ईद के दिन कोई खाली हाथ न रहे, क्योंकि यह खुशी का दिन है। यह खुशी खासतौर से इसलिए भी है कि रमजान का महीना जो एक तरह से परीक्षा का महीना है, वह अल्लाह के नेक बंदों ने पूरी अकीदत (श्रद्धा), ईमानदारी व लगन से अल्लाह के हुक्मों पर चलने में गुजारा। इस कड़ी आजमाइश के बाद का तोहफा ईद है।
ईद की नमाज के जरिए बंदे खुदा का शुक्र अदा करते हैं कि उसने ही हमें रमजान का पाक महीना अता किया, फिर उसमें इबादतें करने की तौफीक दी और इसके बाद ईद का तोहफा दिया। तब बंदा अपने माबूद (पूज्य) के दरबार में पहुंचकर उसका शुक्र अदा करता है। सही मायनों में तो ये मन्नतें पूरी होने का दिन है।
इन मन्नतों के साथ तो ऊपर वाले के सामने सभी दुआ मांगने के लिए तैयार हो जाते हैं। उस रहीमो-करीम की असीम रहमतों की आस लेकर एक माह तक निरंतर इम्तिहान देते रहे। कोशिश करते रहे कि उसने जो आदेश दिए हैं उन्हें हर हाल में पूरा करते रहें। चाहे वह रोजों की शक्ल में हो, सेहरी या इफ्तार की शक्ल में। तरावीह की शक्ल में या जकात-फित्रे की शक्ल में। सभी ने अपनी हिम्मत के मुताबिक अमल किया, अब ईद के दिन सारे संसार का पालनहार उनको नवाजेगा।
अत: इसी तरह ईद उल फितर/ ईद-उल-फित्र मन्नतें पूरी होने का दिन तथा अल्लाह की तरफ से रोजेदारों को तोहफे का दिन माना गया है। इस प्रकार यह भी कहा जा सकता हैं कि एक महीने के चिंतन तथा आध्यात्मिक भक्ति के बाद ईश्वर के प्रति आभार व्यक्त करने के लिए ईद-उल-फितर का त्योहार मनाया जाता है, जिसे 'मीठी ईद' के नाम से भी जाना जाता हैं और यह रमजान माह के समाप्ति का प्रतीक है।
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