इस्लामिक कैलेंडर में रमजान-उल-मुबारक (Ramadan ul Mubarak) नौवां महीना है। रमजान की शुरुआत चांद देखने के बाद होती है। इसे अरबी में 'माह-ए-सियाम' भी कहते हैं। यह रहमतों और बरकतों वाला महीना है, जिसमें अल्लाह शैतान को कैद कर देता है, जिससे वह लोगों की इबादत में खलल न डाले। इस माहे-मुबारक में अल्लाह की रहमत खुलकर अपने बंदों पर बरसती है। इस माह में हर नवाफिल का सवाब सुन्नतों के बराबर और हर सुन्नत का सवाब फर्ज के बराबर कर दिया जाता है।
दुनिया भर में मुस्लिम समुदाय के लोग रोजे के महीने को बलिदान का महीना मानते हैं। इस बार 3 अप्रैल को पहला रोजा रखा जाएगा, माना जा रहा है कि अगर 2 अप्रैल को चांद दिखा तो 3 अप्रैल के दिन पहला रोजा रखा जाएगा, तथा रमजान के 30 दिन के रोजे की शुरुआत हो जाएगी।
हालांकि अल्लाह के रसूल पैगंबर साहब बख्शे-बख्शाए थे, लेकिन वे दिन भर रोजा रखते और रात भर इबादत में गुजारते थे। पैगंबर साहब (सल्ल.) की एक हदीस है जिसका मफूम है कि रमजान का पहला अशरा रहमत वाला है, दूसरा अशरा अपने गुनाहों की माफी मांगने का है और तीसरा अशरा जहन्नम की आग से अल्लाह की पनाह चाहने वाला है।
रमजान का तीसरा अशरा जहन्नम की आग से अल्लाह की पनाह मांगने का है। रमजान के महीने में इशा की नमाज के बाद मस्जिदों में 'तरावीह' होती है, जिसमें बीस रकात नमाज में इमाम साहब कुरान मजीद की तिलावत करते हैं। यह माह अल्लाह की इबादत का पर्व है।