रामायण का जटायु पक्षी गिद्ध, गरुड़ या कुछ और

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Jatayu ramayan
History Of Jatayu : प्रचलन से रामायण काल के जटायु पक्षी को गिद्धराज माना जाता है, यानी गिद्धों के राजा। हालांकि कई विद्वानों के अनुसार  जटायु गिद्ध नहीं गरुड़ प्रजाती से थे। विज्ञान की खोज के अनुसार जाटायु नामक पक्षी की एक प्रजाती होती थी। इन्हें आसमान में उड़ता हुआ छोटा डायनासोर मान सकते हैं। इसे टेराटोर्न कहते थे।
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पौराणिक तथ्‍य : भगवान गरुड़ और उनके भाई अरुण दोनों ही प्रजापति कश्यप की पत्नी विनता के पुत्र थे। इन दोनों को देव पक्षी माना जाता था। गरूड़जी विष्णु की शरण में चले गए और अरुणजी सूर्य के सारथी हुए। सम्पाती और जटायु इन्हीं अरुण के पुत्र थे। चूंकि अरुण एक गरूड़ प्रजाती के पक्षी थे तो सम्पाती और जटायु को भी गरूड़ ही माना जाना चाहिए। रामायण अनुसार जटायु गृध्रराज थे और वे ऋषि ताक्षर्य कश्यप और विनीता के पुत्र थे। गृध्रराज एक गिद्ध जैसे आकार का पर्वत था। दोनों को कई जगहों पर गिद्धराज तो कुछ जगहों पर गरूड़ बंधु कहा गया है।
 
पुराणों के अनुसार सम्पाती बड़ा था और जटायु छोटा। ये दोनों विंध्याचल पर्वत की तलहटी में रहने वाले निशाकर ऋषि की सेवा करते थे और संपूर्ण दंडकारण्य क्षेत्र विचरण करते रहते थे। एक ऐसा समय था जबकि महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में गिद्ध और गरूढ़ पक्षियों की संख्या अधिक थी लेकिन अब नहीं रही।
 
टेराटोर्न : नेशनल जियोग्राफिक की रिपोर्ट के अनुसार करीब 60 लाख साल पहले अर्जेंटीना के आसामान में टेराटोर्न नामक एक विशालकाय शिकारी पक्षी हुआ करता  था। इसे ही जटायु (Argentavis) माना गया है। कहते हैं कि इसका वजन 70 किलोग्राम था और इसके पंखों का फैलाव 7 मीटर था। यह Cessna 152 लाइट एयरक्राफ्ट के बराबर था। 
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रिपोर्ट के मुताबिक अर्जेंटाविस यानी जटायु शिकारी पक्षियों की एक विलुप्त समूह का सदस्य था जिसे टेराटोर्न यानी राक्षस पक्षी कहा जा सकता है। शोधानुसार इन पक्षियों का संबंध आज के गिद्धों और सारस के साथ ही तुर्की के गिद्धों और कंडोर्स से माना जाता है।

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