जब राम द्वारा वन में मारीच का वध होता है और वह 'हा लक्ष्मण' की पुकार लगाकर सीता को भ्रमित करता है। उस समय बेचैन हो रहीं सीता माता देवर लक्ष्मण से कहती हैं, 'अरे लक्ष्मण, वन में आर्त स्वर से पुकार रहे अपने भ्राता को बचाने चल पड़ो। तुम्हारी सहायता की अपेक्षा रखने वाले अपने भाई के पास शीघ्रता से जाओ। वे राक्षसों के वश में पहुंच रहे हैं, जैसे कोई सांड सिंहों से घिर जाए।'
किंतु ऐसा कहे जाने पर भी लक्ष्मण अपने भाई के आदेश को विचारते हुए वहां से नहीं हिले। तब उस स्थल पर लक्ष्मण की उदासीनता से क्षुब्ध हो रहीं जनकपुत्री ने कहा, 'अरे सुमित्रानंदन, तुम तो मित्र के रूप में अपने भाई के शत्रु हो, जो कि तुम इस संकट की अवस्था में भाई के पास नहीं पहुंच रहे हो। तुम मेरी खातिर राम का नाश होते देखना चाहते हो?'
सीता ने बहुत-कुछ भला-बुरा कहा जिससे लक्ष्मण का विचलित होना स्वाभाविक था। तब न चाहते हुए भी उन्होंने राम के पास चले जाना ही उचित समझा। तब हाथ जोड़े हुए आत्मसंयमी लक्ष्मण ने नतमस्तक हो सीता को प्रणाम किया और उनकी ओर चितिंत दृष्टि से बारम्बार देखते हुए वे श्रीराम के पास चले गए। और तब संन्यासी का रूप धरे रावण को उपयुक्त अवसर मिल गया, अत: वह शीघ्रता से वैदेही सीता के पास आ पहुंचा।
'रामचरित मानस' के अरण्य-काण्ड के अनुसार सीताहरण के प्रसंग में सीताजी द्वारा लक्ष्मणजी को मर्म वचन कहे जाने पर लक्ष्मणजी उन्हें वन और दिशाओं आदि को सौंपकर वहां से चले जाते हैं।
प्रचलित रूप से यह कथा है:-
लक्ष्मण रेखा का किस्सा रामायण कथा का महत्वपूर्ण और प्रसिद्ध प्रसंग है। यहीं से वनवासी राम और लक्ष्मण की जिंदगी बदल जाती है। रामायण के अनुसार वनवास के समय सीता के आग्रह के कारण भगवान राम मायावी स्वर्ण मृग (हिरण) के आखेट हेतु उसके पीछे चले जाते हैं।
थोड़ी देर में सहायता के लिए राम की पुकार सुनाई देती है, तो सीता माता व्याकुल हो जाती हैं। वे लक्ष्मण से उनके पास जाने को कहती हैं, लेकिन लक्ष्मण बहुत समझाते हैं कि यह किसी मायावी की आवाज है, राम की नहीं, लेकिन सीता माता नहीं मानती हैं। तब विवश होकर जाते हुए लक्ष्मण ने कुटी के चारों ओर एक सुरक्षा रेखा खींच दी और सीता माता से कहा कि आप किसी भी दशा में इस रेखा से बाहर न आना।
लेकिन तपस्वी के वेश में आए रावण के झांसे में आकर सीता ने लक्ष्मण की खींची हुई रेखा से बाहर पैर रखा ही था कि रावण उसका अपहरण कर ले गया। उस रेखा से भीतर रावण, सीता का कुछ नहीं बिगाड़ सकता था तभी से आज तक 'लक्ष्मण रेखा' नामक उक्ति इस आशय से प्रयुक्त होती है कि किसी भी मामले में निश्चित हद को पार नहीं करना चाहिए, वरना नुकसान उठाना पड़ता है।
अन्य विश्लेषण:-
यह सभी जानते हैं कि सीता माता का हरण इसलिए हुआ, क्योंकि उन्होंने लक्ष्मण रेखा को पार किया था। रामायण आधारित टीवी सीरियल या फिल्मों में यह कथा बताई जाती है कि लक्ष्मण ने कुटिया के आसपास एक ऐसी सुरक्षा रेखा खींची थी जिसके अंदर रहकर ही माता सीता सुरक्षित रह सकती थीं लेकिन माता सीता ने लक्ष्मण की आज्ञा का उल्लंघन किया और रावण ने उनका हरण कर लिया।
हालांकि कहते हैं कि इस लक्ष्मण रेखा का जिक्र न तो वाल्मीकि रामायण में है और न ही रामचरित मानस में। हां, मंदोदरी एक स्थान पर इस तरह की रेखा का इशारा जरूर करती है। दूसरी ओर बंगाल के काले जादू वाले काल में 'कृतिवास रामायण' में तंत्र-मंत्र के प्रभाव से लक्ष्मण रेखा की बात कही गई है।