श्रृंगवेरपुर में नाव से गंगा पार करके वे प्रयाग राज पहुंचे। वहां से वे प्रभु श्रीराम ने प्रयाग संगम के समीप यमुना नदी को पार किया और फिर पहुंच गए चित्रकूट। चित्रकूट वह स्थान है, जहां राम को मनाने के लिए भरत अपनी सेना के साथ पहुंचते हैं। तब जब दशरथ का देहांत हो जाता है। भारत यहां से राम की चरण पादुका ले जाकर उनकी चरण पादुका रखकर राज्य करते हैं। चित्रकूट के पास ही सतना (मध्यप्रदेश) स्थित अत्रि ऋषि का आश्रम था। हालांकि अनुसूइया पति महर्षि अत्रि चित्रकूट के तपोवन में रहा करते थे, लेकिन सतना में 'रामवन' नामक स्थान पर भी श्रीराम रुके थे, जहां ऋषि अत्रि का एक ओर आश्रम था।
इसके अलावा, माता अनुसूया ने माता सीता को एक दिव्य साड़ी भी भेंट स्वरूप दी थी। कहते हैं कि माता अनुसूया को यह साड़ी स्वयं अग्नि देव ने उनके तपोबल से प्रसन्न होकर प्रदान की थी। इस साड़ी की विशेषता थी कि यह कभी भी न तो फटती थी और न ही मैली होती थी। इस पर किसी भी प्रकार का कोई दाग भी नहीं लगता था। इस साड़ी में अग्नि देव का तेज विद्यमान था।