वानरराज सुग्रीव की 10 खास बातें, तारा नहीं रोकती तो कर देते लक्ष्मण उसका वध

अनिरुद्ध जोशी
गुरुवार, 16 अप्रैल 2020 (18:09 IST)
वाल्मीकि कृत रामायण में प्रभु श्री राम की जीवन गाथा का वर्णन मिलता है। रावण जब माता सीता के हरण कर ले जाता है तो माता सीता को खोजने, सेना का गठन करने और राम रावण युद्ध में वानरराज सुग्रीव की महत्वपूर्ण भूमिका रहती है। आओ जानते हैं उनके जीवन की 10 खास बातें।


1. कौन था सुग्रीव : वानरराज सुग्रीव सूर्य का पुत्र, बाली का भाई और अंगद का चाचा था। सुग्रीव की पत्नी का नाम रूमा था तो बाली की पत्नी वानर वैद्यराज सुषेण की पुत्री तारा थी। तारा एक अप्सरा थी।

 
2. सुग्रीव ने खुद को किया राजा घोषित : एक बार दोनों भाई दुंदुभी के भाई मायावी को तो बाली ने कहा कि मैं इस गुफा से बाहर नहीं निकलूं तब तक तुम बहार ही रहना। मायावी गुफा में घुस गया था। एक वर्ष के बाद गुफा से दैत्य के चित्कार की आवाज आई और बहुत सारा खून बहकर बाहर आया। सुग्रीव ने समझा की मेरा भाई बाली मारा गया है। कुछ समय के बाद उसने उस गुफा को एक बड़े से पत्‍थर से बंद कर दिया और वहां से चला गया और उसने खुद को किष्किंधा का राजा घोषित कर दिया। 

 
3. भाई ने किया बेदखल : कुछ काल के बाद जब बाली लौटा तो उसने देखा कि सिंहासन पर सुग्रीव बैठा है और उसने मेरी स्त्री और संपत्ति हड़प ली है। यह देखकर बाली को बहुत क्रोध आया। तब उसने सुग्रीव को खूब मारा। सुग्रीव अपनी जान बचाने के लिए ऋष्यमूक पर्वत की एक कंदरा में जा छुपा। हालांकि बाली को मालूम था कि वह कहां छुपा है लेकिन बाली वहां नहीं जा सकता था। क्योंकि उसे मतंग ऋषि ने शाप दिया था कि तू या तेरी वानर सेना यदि इस पर्वत के आसपास भी फटकी तो मारी जाएगी। बस इसीलिए सुग्रीव वहां सुरक्षित रहे। इस दौरान बाली ने सुग्रीव की पत्नी और संपत्ति हड़प ली।

 
4.केसरी और हनुमानजी से मुलाकात : ऋष्यमूक पर्वत पर्वत पर ही सुग्रीव की मुलाकात वानरराज केसरी से मुलाकात हुई। केसरी ने सुग्रीव की सहायता के लिए अपने पुत्र हनुमानजी को सुग्रीव के पास छोड़ दिया। सुग्रीव ने वहीं अपनी सुरक्षा हेतु एक छोटी-सी सेना गठित की और वहीं से वह बाली पर हमला करता था लेकिन बाली तो महाशक्तिशाली था। कई बार सुग्रीव को मुंड की खाना पड़ी।

 
5. श्री राम से मिलाप : फिर एक दिन सीता को खोजते हुए प्रभु श्रीराम और लक्ष्मण ऋष्यमूक पर्वत पहुंचे। जब सुग्रीव ने राम और लक्ष्मण को देखा तो वह भयभीत हो गया। इतने बलशाली और तेजस्वीवान मनुष्य उसने कभी नहीं देखे थे। वह भागते हुए हनुमान के पास गया और कहने लगा कि हमारी जान को खतरा है। सुग्रीव को लग रहा था कि कहीं यह बाली के भेजे हुए तो नहीं हैं। हनुमानजी ब्राह्मण का वेष धारण कर दोनों के समक्ष पहुंचे और उन्होंने अपने प्रभु श्रीराम को पहचाना। फिर हनुमानजी के राम और लक्ष्मण को सुग्रीव से मिलाया।
 
6. श्री राम ने सुग्रीव को और सुग्रीव ने श्रीराम को अपनी व्यथा सुनाई : श्रीर राम ने सुग्रीव को और सुग्रीव को राम ने अपनी कथा और व्यथा बताई। तब राम ने सुग्रीव के दुख हरण के लिए बाली का वध करने का वचन दिया। प्रभु श्रीराम ने सुग्रीव से अपने बड़े भाई बाली से युद्ध करने को कहा और इसी दौरान श्रीराम ने छुपकर बाली पर तीर चला दिया और वह मारा गया। बाली वध के बाद सुग्रीव किष्किंधा के राजा बने, अपने भाई बाली के पुत्र अंगद को युवराज बनाया।
 
 
7. लक्ष्मण के ललकारा : कहते हैं कि बाली वध के बाद सुग्रीव किष्किंधा का राजा बना तब उसने बाली की पत्नी तारा को भी अपनी पत्नी बना लिया और वह राग, उल्लास एवं काम में डूबकर भगवान श्रीराम को दिया वचन भूल गया। वचन के अनुसार उसे राम के लिए सेना का गठन कर सीता माता को ढूंढना और रावण से युद्ध करना था। लक्ष्मण को यह बात अच्‍छी नहीं लगी तब उसने सुग्रीव के राज्य पर हमला कर दिया। अंत में तारा के समझाने पर लक्ष्मण का क्रोध शांत हुआ। फिर बाद में बाली ने राम के लिए वानर सेना को गठित किया।

 
8. सीता माता को ढूंढने के लिए लगा दी अपनी संपूर्ण वानर सेना : सुग्रीव की वानर सेना और जामवंत की रीछ सेना ने माता सीता को ढूंढने के लिए चप्पा चप्पा छाना। बाद में उन्हें पता चला की रावण माता को लंका ले गया है। संपाती की मदद से माता सीता के स्थान का पता चला। संपाती ने समुद्र पार देखकर बताया कि माता सीता रावण की वाटिका में सुरक्षित बैठी है। सुग्रीव की सेना ने ही सेतु बनाने का कार्य किया था। 

 
9. लक्ष्मण ने बचाया सुग्रीव को : राम रावण का युद्ध हुआ और इसके कुंभकर्ण ने सुग्रीव को पकड़ लिया। वह सुग्रीव को मारने वाला ही था कि एन वक्त पर लक्ष्मण ने उन्हें बचा लिया।

 
10. अयोध्या में सुग्रीव : सुग्रीव ने राम की सेना में रावण से युद्ध करने के बाद प्रभु श्रीराम के राज्याभिषेक में अयोध्या में भी गए थे। अयोध्या में भगवान श्रीराम ने गुरुदेव वसिष्ठ को सुग्रीव आदि का परिचय देते हुए कहा-

 
ए सब सखा सुनहु मुनि मेरे। भए समर सागर कहुं बेरे॥
मम हित लागि जन्म इन्ह हारे। भरतहु ते मोहि अधिक पिआरे॥
 
कुछ काल तक अयोध्या में रहने के बाद भगवान ने सुग्रीव को विदा कर दिया। फिर जब प्रभु श्रीराम ने अपनी लीला को सरयू में जल समाधि लेकर समाप्त किया, तब सुग्रीव भी उनके साथ उपस्थित थे।

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