Swayamprabha in ramayana hanuman katha: तुलसीदासकृत रामचरित मानस के किष्किंधा कांड के दोहा 24 और चौपाई 1 से लेकर 4 और चौपाई 25 में इस बात कर वर्णन मिलता है कि हनुमान जी जब अपने वानरों का दल लेकर माता सीता की खोज में निकले थे तब रास्ते में उन्हें एक गुफा नजर आई उस गुफा में एक महिला तप कर रही थी। यह महिला कौन थी जिसने हनुमानजी को यह बताया कि लंका किस दिशा में है और वह खुद श्रीराम के दर्शन करने चली गई? जानें रोचक कथा।
भगवान विश्वकर्मा की पुत्री हेमा की सखी का नाम स्वयंप्रभा था। हेमा ने अपनी भक्ति और तप के बल पर भगवान शिव को प्रसन्न कर लिया था। शिवजी ने प्रसन्न होकर उसे दिव्य लोक की प्राप्ति का वरदान दिया। जब हेमा अपनी गुफा से दिव्य लोक में जा रही थी तब उसने अपनी सखी स्वयंप्रभा को भी तप का उपदेश दिया और कहा कि वह गुफा में रहकर निरंतर भगवान राम का चिंतन करे। जब भगवान राम के दूत माता सीता को ढूंढते हुए गुफा में आए तब उनका आदर- सत्कार कर उन्हें प्रेम से खिलाना-पिलाना। इसके बाद भगवान राम के पास जाकर उनके दर्शन कर जीवन को धन्य कर मुक्ति हो जाना। अपनी सखी हेमा से उपदेश प्राप्त कर ही स्वयंप्रभा ने उसी गुफा में तपस्या शुरू की।
वानर राज सुग्रीव के आदेश जब हनुमान जी जटायु सहित अंगद आदि वानरों का दाल लेकर माता सीता को खोज में निकले तो रास्ते में उन्हें एक गुफा नजर आई। गुफा के अंदर जाकर उन्होंने देखा कि एक उत्तम बगीचा और तालाब है, जिसमें बहुत से कमल खिले हुए हैं। वहीं एक सुंदर मंदिर है, जिसमें एक तपस्विनी स्त्री बैठी है।
फिर स्वयंप्रभा ने कहा कि तुम सब आंखें बंद करो और जब तुम आंखे खोलोगे तो तुम सब समुद्र के तट पर खुद को खड़ा पाओगे, जिधर माता सीता गई है। सभी ने ऐसा ही किया तब स्वयंप्रभा ने अपने तपोबल से सभी को लंका तक पहुंचने के लिए समुद्र तट पर छोड़ दिया।