Ramayan: राम और रावण के युद्ध में प्रत्येक वर्ग ने युद्ध लड़ा था। मानव, वानर, पक्षी, रीछ, दानव, असुर, राक्षस आदि कई तरह की प्रजातियां थीं। इन्हीं में पक्षियों का भी कुछ न कुछ योगदान रहा है। रामायण काल में पक्षियों की भूमिका भी महत्वपूर्ण रही है। आओ जानते हैं ऐसे ही 4 पक्षियों के बारे में जिन्होंने श्रीराम की किसी न किसी रूप में सहायता की थी।
1. जटायु : अरुण के पुत्र, भगवान गरूड़ के भतीजे, संपाती के भाई और दशरथ के मित्र जटायु को श्रीराम की राह में शहीद होने वाला पहला सैनिक माना जाता है। जिस समय रावण माता सीता का हरण कर आकाश मार्ग से लंका की ओर पुष्पक विमान से जा रहा था, तब जटायु ने रावण को चुनौती देते हुए सीताजी को छुड़ाने के लिए रावण से संघर्ष किया था। रावण ने अपनी तलवार से जटायु के दोनों पंख काट दिए थे। जब राम सीता की खोज में दंडकारण्य वन की ओर बढ़े तो उन्हें घायल अवस्था में जटायु मिला था। घायल जटायु ने ही बताया था कि रावण सीताजी का हरण कर दक्षिण दिशा की ओर ले गया है। उसके बाद जटायु ने राम की गोद में ही प्राण त्याग दिए थे। जटायु के मरने के बाद राम ने उसका वहीं अंतिम संस्कार और पिंडदान किया।
2. संपाती : जामवंत, अंगद, हनुमान आदि जब सीता माता को ढूंढ़ने जा रहे थे तब मार्ग में उन्हें बिना पंख का विशालकाय पक्षी सम्पाति नजर आया, जो उन्हें खाना चाहता था लेकिन जामवंत ने उस पक्षी को रामव्यथा सुनाई और अंगद आदि ने उन्हें उनके भाई जटायु की मृत्यु का समाचार दिया। यह समाचार सुनकर सम्पाती दुखी हो गया। सम्पाती ने तब उन्हें बताया कि हां मैंने भी रावण को सीता माता को ले जाते हुए देखा। दरअसल, जटायु के बाद रास्ते में सम्पाती के पुत्र सुपार्श्व ने सीता को ले जा रहे रावण को रोका था और उससे युद्ध के लिए तैयार हो गया। किंतु रावण उसके सामने गिड़गिड़ाने लगा और इस तरह वहां से बचकर निकल आया। सुपार्श्व ने बतलाया- 'कोई काला राक्षस सुंदर नारी को लिए चला जा रहा था। वह स्त्री 'हा राम, हा लक्ष्मण!' कहकर विलाप कर रही थी। यह देखने में मैं इतना उलझ गया कि मांस लाने का ध्यान नहीं रहा।' सम्पादी ने दिव्य वानरों अंगद और हनुमान के दर्शन करके खुद में चेतना शक्ति का अनुभव किया और अंतत: उन्होंने अंगद के निवेदन पर अपनी दूरदृष्टि से देखकर बताया कि सीता माता अशोक वाटिका में सुरक्षित बैठी हैं। सम्पाति ने ही वानरों को लंकापुरी जाने के लिए प्रेरित और उत्साहित किया था। इस प्रकार रामकथा में सम्पाती ने भी अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और अमर हो गए।
3. गरुढ़ : जब रावण के पुत्र मेघनाथ ने श्रीराम से युद्ध करते हुए श्रीराम को नागपाश से बांध दिया था, तब देवर्षि नारद के कहने पर गिद्धराज गरूड़ ने नागपाश के समस्त नागों को खाकर श्रीराम को नागपाश के बंधन से मुक्त कर दिया था। भगवान राम के इस तरह नागपाश में बंध जाने पर श्रीराम के भगवान होने पर गरूड़ को संदेह हो गया। इसका समाधान काकभुशुण्डिजी ने किया।
4. काकभुशुण्डि : भगवान राम के इस तरह नागपाश में बंध जाने पर श्रीराम के भगवान होने पर गरूड़ को संदेह हो गया। गरूड़ का संदेह दूर करने के लिए देवर्षि नारद उन्हें ब्रह्माजी के पास भेज देते हैं। ब्रह्माजी उनको शंकरजी के पास भेज देते हैं। भगवान शंकर ने भी गरूड़ को उनका संदेह मिटाने के लिए काकभुशुण्डिजी के पास भेज दिया। अंत में काकभुशुण्डिजी ने राम के चरित्र की पवित्र कथा सुनाकर गरूड़ के संदेह को दूर किया। वाल्मीकि से पहले ही काकभुशुण्डि ने रामायण गिद्धराज गरूड़ को सुना दी थी।