सदियों से राजकुमारी कर रही है इस मंदिर में पूजा!

-अवनीश कुमार
कानपुर देहात में एक छोटा-सा गांव है बनीपारा। इसी गांव में एक चमत्कारी शिव मंदिर है, जिसे बाणेश्वर के नाम से जाना जाता है। माना जाता है कि यह मंदिर महाभारतकालीन है। इस मंदिर से जुड़ी कई रोचक जानकारियां हैं, जो श्रद्धालुओं को दांतों तले अंगुली दबाने पर मजबूर करती हैं। 
मंदिर के पुजारी व समाजसेवी चतुर्भुज त्रिपाठी का कहना है कि यह मंदिर महाभारत काल से इस गांव में है और प्रलय काल तक रहेगा। राजा बाणेश्वर की बेटी ऊषा भगवान शिव की अनन्य भक्त थी। उनकी पूजा करने वह इतनी तल्लीन हो जाती थी कि अपना सब कुछ भूलकर आधी-आधी रात तक दासियों के साथ शिव का जाप करती थी। बेटी की भक्ति को देखकर राजा शिवलिंग को महल में ही लाना चाहते थे ताकि उनकी बेटी को जगंल में न जाना पड़े और उसकी पूजा आराधना महल में ही चलती रहे। राजा बाणेश्वर ने इसके लिए घोर तपस्या की।
 
कई वर्षों के बाद राजा की तपस्या से प्रसन्न होकर भोलेशंकर ने उन्हें दर्शन दिए और वरदान मांगने को कहा। उनकी बात सुनकर राजा ने उनसे अपने महल में ही प्रतिष्ठित होने की प्रार्थना की। भगवान ने उनकी इस इच्छा को पूर्ण करते हुए अपना एक लिंग स्वरूप उन्हें दिया, किन्तु शर्त रखी कि जिस जगह वह इस शिवलिंग को रखेंगे, वह उसी जगह स्थापित हो जाएगा। 
 
शिवलिंग पाकर प्रसन्न राजा बाणेश्वर तुरंत अपने राजमहल की ओर चल पड़े। रास्ते में ही राजा को लघुशंका के लिए रुकना पड़ा। उन्हें जंगल में एक आदमी आता दिखाई दिया। राजा ने उसे शिवलिंग पकड़ने के लिए कहा और जमीन पर न रखने की बात कहीं।
 
उस आदमी ने शिवलिंग पकड़ तो लिया, लेकिन वह इतना भारी हो गया कि उसे शिवलिंग को जमीन पर रखना पड़ा। जब राजा बाणेश्वर वहां पहुंचे तो नजारा देख हैरान रह गए। उन्होंने शिवलिंग को कई बार उठाने की कोशिश की, लेकिन वह अपनी जगह से नहीं हिला। अंततः राजा को हार माननी पड़ी और वहीं पर मंदिर का निर्माण कराना पड़ा, जो आज भी बाणेश्वर के नाम से मशहूर है।
 
रोज सुबह चढ़ जाते हैं इस चमत्कारी शिवलिंग पर अक्षत और पुष्प... पढ़ें अगले पेज पर...
 
 
 

क्या है मान्यता : मंदिर के बारे में मान्यता है कि सदियों से भोर के समय शिवलिंग पर पुष्प, चावल और जल खुद-ब-खुद चढ़ जाता है। कहा जाता है कि राजकुमारी उषा आज भी सबसे पहले आकर यहां शिवजी की पूजा करती हैं। ग्रामीणों के अनुसार इस मंदिर में स्थापित अद्भुत शिवलिंग के दर्शन मात्र से भक्तों की मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं।
कांवड़िए सबसे पहले लोधेश्वर और खेरेश्वर मंदिर में गंगाजल अर्पित करते हैं। इसके बाद बाणेश्वर मंदिर में जल चढ़ाकर अनुष्ठान को पूरा करते हैं। गांववालों की आस्था है कि सावन के सोमवार का व्रत रखने से सभी मुरादें पूरी होती हैं। नागपंचमी के दिन यहां एक बड़े मेले का आयोजन होता है, जिसमें देशभर के कांवाड़ियों की भीड़ जुटती है।
 
उपेक्षा का शिकार : समाजसेवी चतुर्भुज त्रिपाठी ने बताया कि यह एक बहुत प्राचीन मंदिर है और हर शिवरात्रि पर यहां पर 15 दिन का विशाल मेला का आयोजन होता है, जिस मेले को लेकर लाखों लोग दूर-दूर से आते हैं। 
 
इस मेले की पुष्टि राजस्व अभिलेख भी करते हैं जिसमें या मेला दर्ज है, लेकिन शासन की अनदेखी के चलते यह प्राचीन मंदिर आज भी उपेक्षा का शिकार है जिसके चलते मंदिर से जुड़ी भूमि पर अब भू-माफियाओं ने कब्जा कर रखा है, जिसकी शिकायत कई बार गांव वालों ने जिला प्रशासन से की लेकिन उसके बावजूद भी जिला प्रशासन के कानों में जूं तक नहीं रेंगी अगर ऐसे ही चलता रहा तो वह दिन दूर नहीं जब यह मंदिर कही इतिहास के पन्नों में खो कर रह जाएगा।
 

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