इस सीट पर कभी नहीं मिली भाजपा को जीत...

अवनीश कुमार

गुरुवार, 19 जनवरी 2017 (11:36 IST)
लखनऊ। उत्तरप्रदेश में 2017 के विधानसभा चुनाव को लेकर जहां हर पार्टियां जोड़-तोड़ करने में लगी हुई हैं तो वहीं उत्तरप्रदेश में कुछ सीटें ऐसी हैं, जहां से भारतीय जनता पार्टी को कभी भी जीत नसीब नहीं हुई है।
 
जहां आज भारतीय जनता पार्टी के कार्यकर्ता व पार्टी के वरिष्ठ पदाधिकारी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नाम पर उत्तरप्रदेश में सरकार बनाने का सपना देख रहे हैं और प्रदेश की अधिक से अधिक सीटों पर जीत दर्ज कराने का ख्वाब सजा रहे हैं तो वहीं उत्तरप्रदेश की हरदोई सदर सीट भारतीय जनता पार्टी को सोचने पर मजबूर कर देती है।
 
क्योंकि अगर भारतीय जनता पार्टी अतीत के पन्नों में झांके तो कई ऐसे मौके आए, जब भारतीय जनता पार्टी की लहर उत्तरप्रदेश में चल रही थी। प्रदेश में सरकार भी बनाई लेकिन उसके बावजूद हरदोई सदर की सीट पर जीत दर्ज नहीं करा पाए चाहे राम मंदिर की लहर रही हो या फिर अन्य कोई लहर लेकिन भारतीय जनता पार्टी हरदोई सदर सीट के लिए लड़ते ही दिखी। जीत तो दूर, हरदोई सदर सीट पर भारतीय जनता पार्टी दूसरे पायदान पर भी खड़ी नहीं हो पाई।
 
2 नंबर के लिए भी लड़ाई करती दिखाई दे रही हरदोई सदर सीट पर जहां सबसे अधिक पंजे को मजबूती मिली, निर्दलीयों ने भी हरदोई सदर के वासियों का दिल जीता, हाथी चला और साइकिल दौड़ी लेकिन जनसंघ या भारतीय जनता पार्टी हरदोई सदर सीट पर सिर्फ अन्य पार्टियों से लड़ती ही नजर आई और सफलता दूर-दूर तक नहीं मिली।
 
अचंभा तो तब होता है, जब एक बार परिसीमन में बहुत बड़ा परिवर्तन होगा फिर भी भारतीय जनता पार्टी हरदोई सदर सीट कभी नहीं जीती।
 
1951 में अस्तित्व में आई हरदोई सीट
 
* उत्तरप्रदेश विधानसभा चुनावों में 1951 में हरदोई (पूर्वी) नाम से पहचान वाली यह सीट आरक्षित श्रेणी में थी और सबसे पहले चुनाव में बाबू किन्दरलाल 21,247 मत हासिल कर विधायक बने थे। इसी वर्ष किन्दर लाल सांसद भी चुने गए और उपचुनाव हुआ तो कांग्रेस के चंद्रहास 27,160 मतों से विजयी हुए।
 
* 1957 में बाबू बुलाकी राम कांग्रेस से 42,530 मत हासिल कर विधानसभा पहुंचे।
 
* 1962 में कांग्रेस ने महेश सिंह को ही मैदान में उतारा और वे 13,510 मत हासिल कर निर्वाचित हुए।
 
* 1967 में धर्मगज सिंह निर्दलीय लड़े और 12,953 मतों के साथ जीते।
 
* 1969 में आशा कांग्रेस से उतरीं और 19,392 मत पाकर विधानसभा पहुंचीं।
 
* 1974 के चुनाव में कांग्रेस ने श्रीशचन्द्र अग्रवाल को लड़ाया और वे 16,663 मत लेकर विजयी हुए।
 
* 1977 में धर्मगज सिंह ने 27,117 मतों के साथ कांग्रेस से जीत हासिल की।
 
* 1980 में नरेश अग्रवाल को कांग्रेस ने मैदान में उतारा और 28,597 मत हासिल कर विधानसभा में कदम रखा था। और सबसे खास बात यह रही थी कि भारतीय जनता पार्टी के दिग्गज नेता और जनसंघ के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष गंगाभक्त सिंह 14,295 मत पाकर दूसरे स्थान पर रहे थे।
 
* 1985 में कांग्रेस ने उमा त्रिपाठी को टिकट दिया और वे 24,039 मत पाकर निर्वाचित हुई थीं।
 
* 1989 में कांग्रेस ने फिर उमा त्रिपाठी को ही टिकट दिया। नरेश अग्रवाल को दूसरे जिले भेजने की बात कही गई लेकिन उन्होंने इस प्रस्ताव को ठुकराकर सदर से ही निर्दलीय चुनाव लड़ा और 36,402 मत हासिल कर विजयी हुईं। कांग्रेस की उमा त्रिपाठी 26,207 वोटों के साथ रनर रहीं।
 
* 1991 की रामलहर में कांग्रेस ने फिर से नरेश अग्रवाल को प्रत्याशी बनाया और इस चुनाव में 30,370 मत मिले और कांग्रेस की जीत हुई।
 
* 1993 में भी कांग्रेस के नरेश अग्रवाल ने 41,605 मत हासिल कर जीत हासिल की।
 
* 1996 के चुनाव में भी कांग्रेस के नरेश अग्रवाल ने जीत हासिल की। वे 56,744 मत लेकर जीते।
 
* 2002 में नरेश अग्रवाल पहली बार समाजवादी पार्टी की साइकिल से चुनाव लड़े और 63,825 मत हासिल कर विजय पाई।
 
* 2007 में नरेश अग्रवाल फिर समाजवादी पार्टी से लड़े और 67,317 वोट हासिल कर जीते।
 
* मई 2008 में नरेश अग्रवाल को विधानसभा की सदस्यता मिली और वे समाजवादी पार्टी छोड़ बहुजन समाज पार्टी में चले गए और हरदोई सदर की सीट अपने पुत्र नितिन अग्रवाल को सौंप दी। उपचुनाव में बसपा से नितिन अग्रवाल 65,533 वोट लेकर निर्वाचित हुए।
 
* 2012 के विधानसभा चुनाव से दिसंबर 2011 में नरेश अग्रवाल फिर समाजवादी पार्टी में आ गए और नरेश अग्रवाल ने अपने बेटे नितिन अग्रवाल को समाजवादी पार्टी का उम्मीदवार बनाया तो उन्होंने 1,10,063 मत हासिल कर रिकॉर्ड जीत हासिल की थी।
 
सबसे बड़ी बात तो यही कि 1 या 2 बार छोड़कर भारतीय जनता पार्टी हरदोई सीट पर कभी अपने आपको दूसरे पायदान पर खड़े भी नहीं कर पाई। अब ऐसे में सवाल यह उठता है कि जब राम मंदिर की लहर में भारतीय जनता पार्टी हरदोई में कमल का फूल नहीं खिला पाई तो क्या 2017 में होने वाले नरेन्द्र मोदी के चेहरे पर कमल खिला पाएगी? 
 
अब यह तो आने वाला वक्त ही तय करेगा कि 2017 में कमल खिलता है या एक बार फिर दूसरे नंबर पर रहने की लड़ाई लड़ता दिखेगा? पर जो भी हो, हरदोई में भारतीय जनता पार्टी लंबे समय से जीत की आस लगाए बैठी है।
 

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