अरुणा की बेटी एवं सामाजिक कार्यकर्ता दीपा पवार ने कहा, मेरे पिता की मृत्यु के बाद मेरी मां ने हमें पूरा सहयोग दिया और हमारा पालन-पोषण किया। वह एक भट्टे में काम करती थीं और कटलरी बेचती थीं। उनका निःस्वार्थ कार्य अद्वितीय था। हम बहनों ने तय किया था कि श्रद्धांजलि स्वरूप हम उनका अंतिम संस्कार करेंगे, चाहे कुछ भी हो जाए।
दीपा के मुताबिक महिलाओं द्वारा शव को अंतिम संस्कार के लिए ले जाने और अंतिम संस्कार करने के विचार का उनके समुदाय में कुछ लोगों ने समर्थन किया जबकि कुछ लोगों ने विरोध भी किया था, क्योंकि यह पहली बार हो रहा था।
दीपा पवार ने कहा, हमने एक मिसाल कायम की है और हमें खुशी है कि हमारे समुदाय और समाज ने समग्र रूप से हमारे कदम का समर्थन किया है। हमने वही किया जो हमें सही लगा। समाज बदल रहा है।
Edited By : Chetan Gour (भाषा)