हालांकि मुख्यमंत्री ने उसी दौरान महाधिवक्ता के माध्यम से आवेदन दाखिल कर मांग की थी कि इस मामले में उन्हें व्यक्तिगत रुप से पक्षकार नहीं बनाया जावे, क्योंकि उन्होंने संसदीय सचिवों की नियुक्ति मुख्यमंत्री के रूप में की थी, व्यक्तिगत तौर पर नहीं।
याचिका में विधायकों शिवशंकर पैंकरा, लखन देवांगन,तोखन साहू, राजू सिंह क्षत्री, अंबेश जांगडे, रूप कुमारी चौधरी, गोवर्धन सिंह मांझी, लाभचंद बाफना, मोतीराम चंद्रवंशी, चंपादेवी पावले, सहित सुनीति सत्यानंद राठिया की संसदीय सचिव पद पर नियुक्ति को असंवैधानिक एवं अवैध बताते पिछले दिनों उच्चतम न्यायालय के फैसले का उल्लेख किया गया था।
न्यायमूर्ति टीबी राधाकृष्णन तथा न्यायमूर्ति शरद गुप्ता की युगल पीठ ने एक अगस्त को अपने अंतरिम फैसले में संसदीय सचिवों के अधिकारों तथा कामकाज पर रोक लगा थी। याचिकाकर्ता मोहम्मद अकबर ने पिछले दिनों सूचना के अधिकार के तहत प्राप्त जानकारी के आधार पर अदालत के आदेश के विपरीत लाभ लेना जारी रखने के मामले में अवमानना का मामला भी युगल पीठ के समक्ष रखा था।
गत शुक्रवार को याचिकाकर्ताओं और राज्य का पक्ष सुनने के बाद युगल पीठ ने संसदीय सचिवों को भी आज अपना पक्ष रखने का मौका दिया पर आज किसी भी संसदीय सचिव ने अपना पक्ष नहीं रखा। दो राज्यों के संसदीय सचिवों के मामले में उच्चतम न्यायालय तथा दिल्ली सरकार के खिलाफ चुनाव आयोग के फैसले के बाद राज्य के मामले में उच्च न्यायालय के फैसले पर सबकी नजर लगी हुई हैं। (वार्ता)