जम्मू। कोरोना के खतरे के बावजूद कश्मीरियों के दबाव के समक्ष झुकते हुए जम्मू कश्मीर प्रशासन को मजबूरी में आज श्रीनगर में ‘दरबार’ को आखिर खोलना ही पड़ा। कोरोना का खतरा कितना है इसी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि श्रीनगर को रेड जोन में डाला गया है और कश्मीर में सबसे ज्यादा रेड जोन श्रीनगर जिले में ही हैं। यह बात अलग है कि इस बार ‘दरबार’ अर्थात राजधानी बदलने की प्रक्रिया आंशिक रूप से हुई है। पूरा ‘दरबार’ 15 जून के बाद ही लगेगा।
आज श्रीनगर में नागरिक सचिवालय के उद्घाटन के दिन सभी कर्मचारियों को श्रीनगर नगर निगम द्वारा स्थापित स्वच्छता सुरंगों के माध्यम से गुजरना पड़ा है। एसएमसी के आयुक्त गज्जनफर हुसैन ने बताया कि उन्होंने सचिवालय में 4 सेनिटेशन टनल स्थापित किए हैं।
नागरिक सचिवालय में प्रवेश करने से पहले, स्वास्थ्य विभाग द्वारा कोरोना के प्रसार को रोकने के उपायों के तहत कर्मचारियों के शरीर के तापमान को मापने के लिए थर्मल उपकरणों को भी स्थापित किया है। आज के आंशिक दरबार मूव की खास बात यह रही की उप राज्यपाल जीसी मूर्मु भी इस मौके पर उपस्थित थे और उन्हें 'गार्ड ऑफ ऑनर' भी पेश किया गया।
दरअसल 4 अप्रैल को जारी निर्देश के अनुसार, पहले दरबार मूव को आंशिक तौर पर स्थगित करते हुए यह कहा गया था कि फिलहाल शीतकालीन राजधानी जम्मू में दरबार बंद नहीं होगा। 4 अप्रैल के आदेश के अनुसार, चार मई से 15 जून तक सचिवालय और दरबार मूव कार्यालयों के कर्मचारी श्रीनगर व जम्मू दोनों जगह काम करते रहेंगें। पर इसका कश्मीरियों द्वारा प्रबल विरोध किए जाने का परिणाम था कि अब इसकी तारीख को ही 15 जून तक आगे बढ़ाने के साथ ही यह निर्देश जारी किया गया कि अब पूरा दरबार मूव होगा।
यह सच है कि प्रदेश में कोरोना वायरस के संक्रमण से निपटने की मुहिम के बीच सरकार ने कश्मीरी नेताओं के विरोध के आगे घुटने टेकते हुए दरबार खोलने संबंधी अपना फैसला पलट दिया। अब जम्मू कश्मीर की ग्रीष्मकालीन राजधानी श्रीनगर में सरकार का पूरा दरबार 4 मई की जगह 15 जून से खुलना है लेकिन श्रीनगर सचिवालय में आज से आंशिक रूप से कामकाज शुरू करने की जो तैयारी की गई थी उस पर कोरोना और रेड जोन की दहशत बरकरार है।
जानकारी के लिए तंगहाली के दौर से गुजर रहे जम्मू कश्मीर में दरबार मूव पर सालाना खर्च होने वाला 600 करोड़ रुपए वित्तीय मुश्किलों को बढ़ाता है। सुरक्षा खर्च मिलाकर यह 900-1200 करोड़ से अधिक हो जाता है। दरबार मूव के लिए दोनों राजधानियों में स्थाई व्यवस्था करने पर भी अब तक अरबों रुपए खर्च हो चुके हैं।
जम्मू कश्मीर में दरबार मूव की शुरुआत महाराजा रणवीर सिंह ने 1872 में बेहतर शासन के लिए की थी। कश्मीर, जम्मू से करीब 300 किमी दूरी पर था, ऐसे में यह व्यवस्था बनाई कि दरबार गर्मियों में कश्मीर व सर्दियों में जम्मू में रहेगा। 19वीं शताब्दी में दरबार को 300 किमी दूर ले जाना एक जटिल प्रक्रिया थी व यातायात के कम साधन होने के कारण इसमें काफी समय लगता था।
अप्रैल महीने में जम्मू में गर्मी शुरू होते ही महाराजा का काफिला श्रीनगर के लिए निकल पड़ता था। महाराजा का दरबार अक्टूबर महीने तक कश्मीर में ही रहता था। जम्मू से कश्मीर की दूरी को देखते हुए डोगरा शासकों ने शासन को ही कश्मीर तक ले जाने की व्यवस्था को वर्ष 1947 तक बदस्तूर जारी रखा। जब 26 अक्टूबर 1947 को राज्य का देश के साथ विलय हुआ तो राज्य सरकार ने कई पुरानी व्यवस्थाएं बदल ले लेकिन दरबार मूव जारी रखा था।