गुजरात में कक्षा छठवीं के छह लाख छात्र निरक्षर

गुरुवार, 29 मार्च 2018 (17:30 IST)
अहमदाबाद। विकास का ढिंढोरा पीटने वाले 'विकसित' राज्य गुजरात के सरकारी स्कूलों की हालत जानकर आपको राज्य की शिक्षा व्यवस्था पर तरस आ सकता है। एक खोजी पोर्टल कोबरापोस्ट डॉट कॉम के अनुसार गुजरात के सरकारी स्कूलों में कक्षा छठवीं के छह लाख छात्र निरक्षर हैं। जहां पांच लाख छात्र तो पढ़ना ही नहीं जानते हैं। 
 
वर्ष 2014 के आम चुनाव जीतने के लिए तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी ने सारे देश में गुजरात की विकास यात्रा का ढिंढोरा पीटा था। उस समय के बाद बहुत कुछ बदल गया है और मोदी के आलोचकों का कहना है कि गुजरात के सच्चे अर्थों में विकसित राज्य की छवि बुरी तरह धूल धूसरित हुई है। विशेष रूप से तब जबकि मोदीजी 10 वर्षों से अधिक समय तक राज्य के मुख्यमंत्री रहे।
 
इंडियन एक्सप्रेस में प्रकाशित एक रिपोर्ट में कहा गया है कि गुजरात के सरकारी प्राइमरी स्कूलों के कक्षा छठवीं के करीब छह लाख छात्र अपनी मातृभाषा गुजराती में शब्द और सामान्य वाक्य भी नहीं लिख पाते हैं। गुजरात सरकार की राज्य के प्राथमिक स्कूलों में ग्रेडिंग और आकलन की वार्षिक प्रक्रिया-गुणोत्सव- में भी यह बात सामने आई है कि छात्र गुजराती में शब्द और वाक्य लिखने में सफल नहीं हुए।
 
रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि 5.6 लाख से ज्यादा छात्र गणित के सामान्य सवाल हल नहीं कर सके जबकि कक्षा छठवीं से आठवीं तक के पांच से लेकर 6 लाख छात्र तीनों मानकों- पढ़ने, लिखने और सामान्य सवाल- हल करने के मानकों पर खरे नहीं उतरे। विदित‍ हो कि जब मोदी राज्य के मुख्यमंत्री थे तब उन्होंने वर्ष 2009 में गुणोत्सव की शुरुआत की थी।
 
इस मामले में राज्य के शिक्षा मंत्री ने गुजरात में सरकारी स्कूलों की दुर्दशा के लिए शिक्षा के अधिकार को  जिम्मेदार ठहराया है। मंत्री भूपेन्द्र सिंह सिंह चूडास्मा का कहना है कि ' राज्य में शिक्षा के अधिकार तहत किसी को भी फेल न करने की नीति के चलते गुजरात के सरकारी स्कूलों की यह दुर्दशा हो गई है और परिणाम यह है कि कक्षा छह से लेकर आठवीं तक के छात्र न तो पढ़ पाते हैं और न ही सामान्य शब्दों को लिख पाते हैं। 
 
उनका कहना है कि छात्र, पालकों और अध्‍यापकों को इस स्थिति से कोई चिंता नहीं है क्योंकि आठवीं तक उन्हें फेल नहीं किया जाना है। अंग्रेजी भाषा में सबसे अधिक गिरावट देखी गई जोकि 59.9 से घटकर 55.5 पर आ गई। इस तरह से परिणाम में चार फीसदी की गिरावट देखी गई। इसी सोशल साइंस में 1.8 प्रतिशत, गुजराती में 1.7 प्रतिशत और गणित में 58.4 प्रतिशत से 54.4 फीसदी गिरावट देखी गई।   

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