Mother care case : केरल उच्च न्यायालय ने एक कुटुम्ब अदालत के उस आदेश को बरकरार रखा, जिसमें एक बेटे को अपनी 100 वर्षीय मां को 2000 रुपए प्रतिमाह गुजारा भत्ता देने का निर्देश दिया गया था। अदालत ने कहा, हर बेटे का कर्तव्य है कि वह अपनी मां की देखभाल करे। यह कोई दान नहीं है। उच्च न्यायालय ने अप्रैल 2022 के कुटुम्ब अदालत के आदेश के खिलाफ व्यक्ति की अपील खारिज कर दी। न्यायालय ने 57 वर्षीय बेटे को फटकार लगाते हुए कहा कि अगर वह अपनी मां की देखभाल नहीं कर सकता तो उसे खुद पर शर्म आनी चाहिए।
न्यायमूर्ति पीवी कुन्हीकृष्णन ने 57 वर्षीय बेटे को फटकार लगाते हुए कहा कि अगर वह अपनी मां की देखभाल नहीं कर सकता तो उसे खुद पर शर्म आनी चाहिए। अदालत ने कहा, हर बेटे का कर्तव्य है कि वह अपनी मां की देखभाल करे। यह कोई दान नहीं है।
उच्च न्यायालय ने अप्रैल 2022 के कुटुम्ब अदालत के आदेश के खिलाफ व्यक्ति की अपील खारिज कर दी। उच्च न्यायालय ने कहा कि व्यक्ति ने कुटुम्ब अदालत के अप्रैल 2022 के आदेश को 1,149 दिनों बाद 2025 में चुनौती दी और वह भी तब, जब उसके खिलाफ गुजारा भत्ता न देने के लिए वसूली की कार्यवाही शुरू की गई।
न्यायमूर्ति कुन्हीकृष्णन ने कहा, (कुटुम्ब न्यायालय में) याचिका दायर करते समय याचिकाकर्ता की मां 92 वर्ष की थीं, जो अब 100 वर्ष की हो चुकी हैं और अपने बेटे से भरण-पोषण राशि की उम्मीद कर रही हैं! मुझे यह कहने पर मजबूर होना पड़ रहा है कि इस समाज का सदस्य होने के नाते, मुझे बहुत शर्मिंदगी महसूस हो रही है, जहां एक बेटा अपनी 100 वर्षीय मां से सिर्फ इसलिए लड़ रहा है कि उसे 2,000 रुपए की मासिक भरण-पोषण राशि मां को न देनी पड़े।
बेटे ने अपनी मां द्वारा कुटुम्ब अदालत में दायर की गई उस याचिका का विरोध किया था, जिसमें मां ने उससे 5,000 रुपए मासिक भरण-पोषण राशि देने का अनुरोध किया था। बेटे ने दावा किया था कि उसे (मां को) इतनी राशि की आवश्यकता नहीं है और अगर वह उसके साथ रहेगी तो वह ही उसकी देखभाल करेगा। बेटे ने यह भी दावा किया था कि उसकी मां के और भी बच्चे हैं, जो उनकी देखभाल नहीं कर रहे हैं और कुटुम्ब अदालत में यह याचिका उसके बड़े भाई के दबाव में दायर की गई थी।
बेटे ने कहा कि उसकी मां वर्तमान में उसके बड़े भाई के साथ रह रही है। उच्च न्यायालय ने कहा कि यह देखकर दुख हो रहा है कि बेटा अपनी मां की देखभाल करने के लिए तैयार नहीं है और अलग-अलग दलील देकर उसे गुजारा भत्ता देने से इनकार करने के लिए अदालत में लड़ रहा है।
न्यायालय ने कहा कि याचिकाकर्ता को ऐसी स्थिति से बचना चाहिए था, जिसमें उसकी मां को गुजारा भत्ता पाने के लिए अदालत का रुख करना पड़े। न्यायालय ने कहा कि अपनी मां की देखभाल करना याचिकाकर्ता का कर्तव्य है और अगर वह ऐसा नहीं कर रहा है, तो वह इंसान नहीं है। (भाषा)
Edited By : Chetan Gour