मणिपुर हुआ दो फाड़, इस पार मेइती और उस पार कुकी

वेबदुनिया न्यूज डेस्क

शुक्रवार, 19 जनवरी 2024 (23:00 IST)
Manipur violence Case : रात का सन्नाटा जितना गहरा था, अंधेरा उससे कहीं अधिक घना था। अचानक कुछ लोगों ने हमारी बस को रोका और भीतर आ गए। बस में पीछे तक नजरें दौड़ाई और जब यकीन हो गया कि वहां कोई मेइती नहीं है, तो वे लोग बस से उतर गए।
 
हम सब ने राहत की सांस ली। लेकिन एक नई सच्चाई से रूबरू होकर दिमाग झन्ना गया- इसका मतलब मणिपुर पूरी तरह दो फाड़ हो चुका है! पूर्वोत्तर राज्य में कुकी और मेइती समुदायों के बीच हिंसा भले ही पिछले लंबे समय से जारी है लेकिन इससे अलग एक सच्चाई यह भी है कि दोनों समुदायों के बीच खाई बहुत गहरी हो चुकी है, इतनी गहरी की इसकी कोई थाह नजर नहीं आती।
 
पिछले साल मई में राज्य में भड़की हिंसा के बाद से दोनों समुदायों के बीच दुश्मनी जगजाहिर है लेकिन कांग्रेस की ‘भारत जोड़ो न्याय यात्रा’ को कवर करने के लिए जब मैं और मेरे साथी पत्रकार अनवारुल हक इस सप्ताह राज्य के दौरे पर गए तो हमें सही मायने में समझ आया कि नफरत ने कैसे मणिपुर को दो फाड़ कर दिया है।
 
16 जनवरी की रात की बात है। हमारी बस पत्रकारों से भरी थी और साथ में कांग्रेस के एक प्रतिनिधि भी हम लोगों के साथ थे। बस को कोहिमा से इंफाल की करीब 140 किमी की दूरी तय करनी थी। सड़क की हालत इतनी खराब थी कि हमें पांच घंटे लग गए और इस दौरान कुकियों के नियंत्रण वाली ‘जांच चौकियों’ पर हमारी बस को दो बार रोका गया।
 
पहली दफा, जब कुकी लोगों को पता चला कि हम सभी लोग मीडिया वाले हैं और अगले दिन फ्लाइट पकड़ने के लिए इंफाल जा रहे हैं तो वे बस से उतरकर चले गए। हम लोग ये सोचकर परेशान थे कि ये लोग हथियारबंद होते तो क्या होता? जल्द ही हमें दोबारा रोका गया।
 
दूसरी ‘जांच चौकी’ की कमान कुकी महिलाओं ने संभाली हुई थी। उन्होंने बस रुकवाई। कांग्रेस की महिला प्रतिनिधि लेखा नायर से कहा कि वह बस में सवार सभी लोगों के नाम दर्ज कर दें। कुछ पत्रकार बंधु भी उनकी मदद के लिए बस से उतर गए।
 
इस बीच एक आदमी ने बस पर ‘भारत जोड़ो न्याय यात्रा’ का झंडा लगा देखा तो दौड़ते हुए आया और बस को ‘सुरक्षित निकालने’ के लिए उस रास्ते से जाने की अनुमति दी जिसे इन दिनों, विशेष रूप से मई के बाद से सुरक्षित नहीं समझा जाता। उस आदमी ने कुकी महिलाओं की ओर से माफी मांगते हुए कहा कि उनका मकसद पत्रकारों को रोकना नहीं था और यह कि उन्होंने पत्रकारों को ‘कोई और’ समझ लिया था।
 
इसके बाद, बस आगे बढ़ी और मेरे दिमाग में एक ही ख्याल था- क्या होता यदि हममें से कोई ‘कोई और’ होता? हां, उन्हें बस से उतार दिया जाता और फिर? यह सवाल डरा रहा है। रास्ते में हुई इस सिलसिलेवार जांच से वही बात सच साबित हो गई जो हम में से कई 14 जनवरी को मणिपुर पहुंचने के बाद से सोच रहे थे, जब हम राहुल गांधी की अगुवाई वाली यात्रा को कवर करने पहुंचे थे।
 
कुकी-मेइती विभाजन पहली बार उस समय दिखा जब मेरे सहकर्मी अनवारुल हक और मैं मणिपुर की राजधानी इम्फाल से करीब 25 किमी दूर थौबल पहुंचे थे, जहां से यात्रा की शुरूआत होनी थी। एक मेइती संगठन के स्वयंसेवियों ने हमें ‘कुकी के अत्याचारों’ पर एक पुस्तिका सौंपी।
 
अगले दिन, यात्रा इंफाल से नगालैंड में कोहिमा के लिए निकली। पत्रकारों से भरी बस 15 जनवरी को आगे बढ़ी और समाज का बिखरा हुआ तानाबाना हमारी नजरों के सामने था। कुकी समुदाय के कई लोग बैनर लिए कतार में खड़े नजर आए। वे उन पर हुए अत्याचारों के लिए न्याय मांग रहे थे।
 
कांगपोकपी जिले के कुकी इलाकों में जब हमारी बस पहुंची तो दोनों समुदायों के बीच विभाजन और स्पष्ट हो गया। इसी जिले में बी फाइनोम गांव है जहां दो महिलाओं को पिछले साल मई में निर्वस्त्र कर घुमाया गया था। बाद में इसका एक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ था और देशभर में व्यापक रोष जताया गया था। कांगपोकपी, इम्फाल से करीब 40 किमी की दूरी पर है।
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कुकी गांवों के बाहर लगे बैनर पर लिखा हुआ था : मेइती उत्पाद लाने की अनुमति नहीं और बाहरी लोगों को शाम पांच बजे से सुबह छह बजे के बीच प्रवेश की अनुमति नहीं। वापसी में इंफाल तक की यात्रा कुछ दहशत पैदा करने वाली थी। हममें से कुछ को दिल्ली रवाना होने के लिए वहां से विमान में सवार होना था।
 
नगालैंड के चेईफोबोजोउ में 16 जनवरी को राहुल गांधी के संवाददाता सम्मेलन के बाद, मैंने एक टैक्सी ली और पर्वतीय क्षेत्र में 20 किमी की यात्रा कर कोहिमा पहुंचा। मेरे साथी पत्रकार अनवारुल बुखार में तप रहे थे। लेकिन हमारी प्रेस वार्ता को डिजिटल माध्यम से कवर कर रहे थे। मुझे चेईफोबोजोउ से वापस कोहिमा लाने वाले टैक्सी चालक ने मुझे बताया कि इंफाल के लिए टैक्सी या कोई सार्वजनिक वाहन मिल पाना मुश्किल होगा।
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इसलिए अब मुझे यह फैसला करना था कि क्या अन्य पत्रकारों के साथ उसी दिन शाम में इंफाल तक की कठिन यात्रा करूं या सफर के लिए अगले दिन खुद कोई और इंतजाम करूं। कांग्रेस ने बाकी पत्रकारों के लिए सीधे चेईफोबोजोउ से बस की व्यवस्था थी। मेरे साथी पत्रकार का बुखार उतरने का नाम नहीं ले रहा था। वो अभी भी तेज बुखार में थे। मैंने उनसे पूछा कि क्या वह ऐसी हालत में इंफाल तक का सफर कर पाएंगे क्योंकि रास्ता बहुत उबड़-खाबड़ था और सर्द हवाएं भी कहर बरपा रही थीं।
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मेरे साथी पत्रकार ने इस बात से सहमति जताई कि हम अकेले यात्रा नहीं कर सकेंगे और बेहतर होगा कि अन्य पत्रकारों के साथ ही चला जाए। मैंने यह जानने के लिए कांग्रेस समन्वयक को फोन किया कि उनकी बस कहां है और हम खुशकिस्मत थे कि यह कोहिमा से महज कुछ ही मिनटों की दूरी पर थी। वे हमें होटल से ले जाने के लिए राजी हो गए।
 
स्कूल बस के अंदर इसके पिछले हिस्से में सामान भरा हुआ था। हम सभी उसमें सवार होकर आगे के सफर पर निकल पड़े। बस में पैर रखने की जगह नहीं थी। इंटरनेट की आंख मिचौली अलग से जारी थी। दिल्ली ऑफिस में खबर भेजने के लिए बहुत मशक्कत करनी पड़ रही थी।
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जैसा कि लंबी दूरी के सफर में अकसर होता है, कुछ लोगों ने पुराने हिंदी फिल्मी गाने शुरू कर दिए लेकिन कुकी जांच चौकियों से गुजरते ही सब खामोश हो गए। शायद सब लोग मणिपुर के इस विभाजन को स्वीकार करने की हिम्मत जुटाने में लगे थे, जो अभी-अभी हमारे सामने घटा था। ये केवल समुदायों के बीच की दूरी नहीं बल्कि दिलों की दूरी थी और इसे देखकर वाकई बहुत दुख हुआ।
 
आखिरकार, हम रात करीब सवा दस बजे इंफाल पहुंच गए। पूरे रास्ते वाहन चालक मुस्लिम या नगा थे, इससे भी यह संकेत मिलता है कि वर्तमान में मणिपुर समाज कहां जा पहुंचा है। अगले दिन इस कड़वी हकीकत से फिर हमारा सामना हुआ जब हमने इंफाल के लोकल बाजार का चक्कर लगाने की सोची। हम शॉल और हथकरघा वस्तुएं खरीदने गए थे तो देखा कि ‘कुकी शरणार्थी वापस जाओ’ का पोस्टर टंगा हुआ था। दूसरा पोस्टर, मेइती को अनुसूचित जनजाति सूची में शामिल करने के समर्थन में था।
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उसी शाम हम दिल्ली के लिए विमान में सवार होने हवाईअड्डा पहुंच गए। विमान रवाना होने में देर थी। लाउंज में बैठे हुए मैं और अनवारुल पिछले दो दिन में घटी घटनाओं पर मंथन करने में जुटे थे। दोनों की एक ही राय थी समाज को ऐसा दो फाड़ कहीं नहीं देखा।
 
मणिपुर में पिछले साल मई में शुरू हुई हिंसा में अब तक 180 से अधिक लोग मारे गए हैं। राज्य में मेइती समुदाय की आबादी लगभग 53 प्रतिशत है और वे ज्यादातर इंफाल घाटी में रहते हैं, जबकि आदिवासियों-नगा और कुकी समुदाय की आबादी 40 प्रतिशत है जो पर्वतीय जिलों में रहते हैं। (भाषा)
Edited By : Chetan Gour 

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