40 से अधिक मामलों में वांछित बजरंगी ने 17 साल की उम्र में ही रखा था अपराध की दुनिया में कदम
सोमवार, 9 जुलाई 2018 (21:06 IST)
लखनऊ। हत्या और फिरौती समेत 40 से अधिक आपराधिक मामलों में वांछित खूंखार गैंगस्टर मुन्ना बजरंगी ने महज 17 साल की उम्र में पहला जुर्म किया। उसके बाद उसने पीछे मुड़कर नहीं देखा और देखते ही देखते वह पूर्वांचल में अपराध की दुनिया का बादशाह बन गया। गौरतलब है कि पूर्वांचल के कुख्यात डॉन मुन्ना बजरंगी की सोमवार सुबह बागपत जेल में हत्या कर दी गई।
1967 में जौनपुर के पूरेदयाल गांव में जन्मे मुन्ना बजरंगी का असली नाम प्रेम प्रकाश सिंह था। बजरंगी ने 5वीं के बाद पढ़ाई-लिखाई छोड़ दी। एक समय उसके सिर पर 7 लाख का इनाम घोषित था। इस दौरान वह धीरे-धीरे जुर्म की दुनिया की ओर मुड़ता चला गया। पिछले 4 दशकों से उत्तरप्रदेश के अपराध जगत में मुन्ना बजरंगी का नाम चर्चा में था। यही नहीं, पूर्वांचल के इस चर्चित डॉन ने सियासत में भी हाथ आजमाया लेकिन नाकामी हाथ लगी। मुन्ना ने 2012 में राजनीति में कदम रखते हुए विधानसभा चुनाव जौनपुर की मढ़ियाहू सीट से अपना दल के टिकट पर अपनी किस्मत आजमानी चाही लेकिन यहां उसे नाकामयाबी हाथ लगी और वह चुनाव हार गया।
बजरंगी यूपी पुलिस की मोस्ट वांटेड अपराधियों की सूची में था, लेकिन समय-समय पर वह अपनी राजनीतिक आस्था बदलता रहा, हालांकि अपराध जगत में उसके चढ़ते सूरज को उस समय ग्रहण लग गया, जब भाजपा विधायक की हत्या हो गई।
बागपत पुलिस के अनुसार मुन्ना बजरंगी (51) को सुबह करीब 6 बजे जेल में गोली मार दी गई। उसकी घटनास्थल पर ही मौत हो गई। पूर्व बसपा विधायक लोकेश दीक्षित से रंगदारी मांगने के आरोप में बागपत कोर्ट में मुन्ना बजरंगी की सोमवार को पेशी होनी थी। 2005 में बजरंगी का नाम तत्कालीन भाजपा विधायक कृष्णानंद राय की हत्या में भी आया था। वह इस हत्याकांड में 2009 से जेल में था।
बजरंगी के अपराध के दलदल में फंसने की शुरुआत काफी छोटी उम्र में ही हो गई थी। 17 साल की उम्र में ही उसके खिलाफ पुलिस ने मारपीट और अवैध हथियार रखने के आरोप में पहला केस दर्ज किया था। 80 के दशक में बजरंगी को जौनपुर के एक स्थानीय माफिया गजराज सिंह का संरक्षण मिल गया। 1984 में मुन्ना ने लूट के लिए एक कारोबारी को मौत के घाट उतार दिया। गजराज के इशारे पर जौनपुर में बीजेपी नेता रामचंद्र सिंह के मर्डर में भी बजरंगी का नाम सामने आया। इसके बाद तो हत्याओं का सिलसिला चल पड़ा।
बजरंगी ने 90 के दशक में पूर्वांचल के बाहुबली और नेता मुख्तार अंसारी का दामन थामा। उस समय पूरे पूर्वांचल में जुर्म की दुनिया में मुख्तार की तूती बोल रही थी। अंसारी ने इसी दौरान अपराध से सियासत का रुख किया। 1996 में समाजवादी पार्टी के टिकट पर मुख्तार ने मऊ से विधानसभा का चुनाव जीता। इसके बाद बजरंगी का सरकारी ठेकों में दखल बढ़ता गया। इस दौरान वह लगातार मुख्तार अंसारी के संरक्षण में काम करता रहा।
इस इलाके के एक और गैंगस्टर ब्रजेश सिंह से अंसारी की दुश्मनी बढ़ती जा रही थी और यह उस समय और चरम पर पहुंच गई, जब भाजपा नेता कृष्णानंद राय की हत्या हो गई। राय ब्रजेश सिंह के लिए काम कर रहा था और अंसारी के फिरौती और वसूली के काम में बाधा बन रहा था।
2001 में ब्रजेश सिंह गैंग ने मऊ-लखनऊ हाईवे पर मुख्तार अंसारी गैंग पर घात लगाकर हमला किया। बाद में 2005 में मुन्ना बजरंगी और उसकी गैंग ने दिनदहाड़े राय की हत्या कर दी। बजरंगी और उसकी गैंग ने राय और उसके 6 साथियों पर 6 एके-47 रायफल से 400 गोलियां दागीं जिसमें से 7 शवों में से 67 गोलियां मिलीं।
मुन्ना बजरंगी को 2009 में मुंबई के मलाड इलाके से गिरफ्तार किया गया। मार्च 2016 में बजरंगी का साला पुष्पजीत, जो उसका काम देखता था, की लखनऊ के विकास नगर कॉलोनी में गोली मारकर हत्या कर दी गई। बाद में पिछले साल दिसंबर में बजरंगी के खास तारिक को भी गोली मार दी गई थी।
अभी 10 दिन पहले 29 जून को बजरंगी की पत्नी सीमा सिंह ने लखनऊ में संवाददाता सम्मेलन में आरोप लगाया था कि उनके पति की जान को खतरा है। सीमा ने कहा था कि मेरे पति की जान को खतरा है। मैं मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से कहना चाहती हूं कि मेरे पति को षड्यंत्र के जरिए फर्जी मुठभेड़ में मारने की साजिश की जा रही है। (भाषा)