पासा पलटा, अखिलेश यादव बने सपा अध्यक्ष, अमरसिंह, रामगोपाल, नंदा और अग्रवाल निष्कासित
सोमवार, 2 जनवरी 2017 (06:46 IST)
उत्तर प्रदेश में सत्तारुढ़ समाजवादी पार्टी रविवार को दो टुकड़ों में बंट गई। 'असंवैधानिक' करार दिए गए पार्टी के राष्ट्रीय अधिवेशन में मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को अध्यक्ष बनाए जाने से नाराज सपा नेता मुलायमसिंह यादव ने सम्मेलन में पारित सभी प्रस्तावों को अवैध करार देते हुए आयोजन के कर्ताधर्ता सपा महासचिव रामगोपाल यादव तथा उसमें शामिल पार्टी उपाध्यक्ष किरणमय नंदा और महासचिव नरेश अग्रवाल को पार्टी से निकाल दिया।
यही नहीं मुलायम सिंह यादव, शिवपाल यादव और अमर सिंह सोमवार को दिल्ली में चुनाव आयोग से मिलकर पार्टी के राष्ट्रीय अधिवेशन को अवैध घोषित करने की मांग करेंगे और उसमें लिए गए फैसले के खिलाफ शिकायत करेंगे।
सपा महासचिव रामगोपाल यादव द्वारा बुलाए गए राष्ट्रीय अधिवेशन में अखिलेश की सपा अध्यक्ष के रूप में ताजपोशी कर दी गई और मुलायम को पार्टी का संरक्षक घोषित किया गया। वहीं, झगड़े की जड़ माने जा रहे राष्ट्रीय महासचिव अमरसिंह को पार्टी से निकाल दिया गया, जबकि शिवपाल यादव को सपा के प्रदेश अध्यक्ष पद से हटा दिया गया।
अधिवेशन में किरणमय नंदा, नरेश अग्रवाल, रेवती रमण सिंह और रामगोविन्द चौधरी समेत सपा के तमाम वरिष्ठ नेता, ज्यादातर विधायक और विधानपरिषद सदस्य तथा जिलों के पदाधिकारी शामिल हुए। इससे जाहिर हो गया कि सपा अब वास्तविक रूप से टूट चुकी है, बस औपचारिकता भर बाकी है।
राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने के बाद अखिलेश ने अपने पहले आदेश में विधानपरिषद सदस्य नरेश उत्तम पटेल को पार्टी का प्रदेश अध्यक्ष नियुक्त किया। मंच पर बैठे उन तमाम वरिष्ठ नेताओं ने हाथ उठाकर अखिलेश को पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाने के प्रस्ताव का समर्थन किया, जो कभी मुलायम के बगलगीर थे। दूसरे प्रस्ताव के तहत मुलायम सिंह यादव को सपा का सर्वोच्च संरक्षक बनाया गया, जबकि तीसरे प्रस्ताव के तहत शिवपाल सिंह यादव को सपा के प्रदेश अध्यक्ष पद से तत्काल हटाया गया और पार्टी महासचिव अमर सिंह को सपा से तत्काल निष्कासित कर दिया गया।
हालांकि अधिवेशन शुरू होने से कुछ ही देर पहले मुलायम ने एक चिट्ठी जारी कर इसे 'असंवैधानिक' बताते हुए इसमें शामिल होने वाले नेताओं एवं कार्यकर्ताओं के खिलाफ कार्रवाई की चेतावनी दी थी।
मुलायम सिंह ने आनन-फानन में सपा के संसदीय बोर्ड की बैठक बुलाई, जिसमें अधिवेशन के तमाम फैसलों को अवैध करार दिया गया। साथ ही उन्होंने अधिवेशन के कर्ताधर्ता रामगोपाल यादव के साथ-साथ उसमें शिरकत करने वाले पार्टी उपाध्यक्ष किरणमय नंदा और महासचिव नरेश अग्रवाल को पार्टी से निकाल दिया।
रामगोपाल को शनिवार को ही पार्टी में दोबारा वापस लिया गया था। अग्रवाल ने कहा कि अब अखिलेश उनके राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं, लिहाजा मुलायम को उन्हें दल से निकालने का कोई हक नहीं है।
शिवपाल यादव द्वारा 'ट्वीट' किए गए बिना लेटर हेड वाले एक पत्र के अनुसार, संसदीय बोर्ड की बैठक में सपा प्रमुख द्वारा गत 28 दिसंबर को जारी प्रत्याशियों की सूची को अनुमोदित करते हुए बची हुई सीटों पर उम्मीदवारों के चयन के लिये मुलायम को अधिकृत किया गया। खत के मुताबिक, संसदीय बोर्ड ने रविवार के अधिवेशन के बाद फैले 'भ्रम' को दूर करने के लिए आगामी पांच जनवरी को पार्टी का आकस्मिक राष्ट्रीय अधिवेशन बुलाने का निर्णय भी लिया है। बहरहाल, आज के अधिवेशन के बाद अखिलेश समर्थक जबरन सपा कार्यालय में घुस गए और प्रदेश अध्यक्ष के कक्ष के बाहर लगी शिवपाल यादव की नेम प्लेट उखाड़कर फेंक दी। 'नवनियुक्त प्रदेश अध्यक्ष' नरेश उत्तम पटेल ने अपना कार्यभार भी फौरन ग्रहण कर लिया।
राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाए जाने के बाद अखिलेश यादव ने कहा कि वह हमेशा मुलायम सिंह का सम्मान करते थे और अब पहले से ज्यादा सम्मान करते हैं। जब समाज का हर वर्ग सपा की दोबारा सरकार बनाने का मन बना चुका था, तभी कुछ ताकतें साजिशों में जुट गईं। अब प्रदेश में जब दोबारा सपा की सरकार बनेगी तो सबसे ज्यादा खुशी नेताजी को होगी। भावुक हुए अखिलेश ने कहा कि नेताजी का स्थान सबसे ऊपर है। उन्हें डर था कि चुनाव से ऐन पहले 'ना जाने कौन मिलकर उनसे (मुलायम) क्या करा देता। मुझे पार्टी के लिए कोई भी त्याग करना होगा, तो मैं करूंगा'। उन्होंने कार्यकर्ताओं को धन्यवाद देते हुए आहवान किया कि आने वाले दो-ढाई महीने बहुत महत्वपूर्ण हैं। प्रदेश में एक ऐसी धर्मनिरपेक्ष सरकार बनानी है, जो उसे खुशहाली की राह पर ले जा सके।
इसके पूर्व, रामगोपाल यादव ने अपने संबोधन में कहा कि पार्टी और सरकार का काम बहुत ठीक तरीके से चल रहा था और उसी दौरान पार्टी के दो व्यक्तियों ने साजिश करके अखिलेश को प्रदेश अध्यक्ष पद से हटवा दिया। पार्टी में फिर एक संकट पैदा हो गया। उन्होंने कहा कि पार्टी में टिकटों का बंटवारा मनमाने ढंग से होने लगा था। प्रदेश अध्यक्ष राष्ट्रीय अध्यक्ष की तरफ से मनमाने असंवैधानिक फैसले लेते रहे। जो लोग पार्टी के सदस्य भी नहीं है, उन्हें टिकट दिए गए। स्पष्ट था यह लोग किसी भी कीमत पर नहीं चाहते थे, सपा चुनाव जीते और अखिलेश फिर मुख्यमंत्री बनें। रामगोपाल यादव ने कहा कि पानी जब सिर से ऊपर निकल गया तब पार्टी के हजारों कार्यकर्ताओं ने विशेष अधिवेशन बुलाने की लिखित मांग की थी। हमने दो महीने तक सुधार का इंतजार किया। तब यह निर्णय लिया गया कि पार्टी का विशेष आपातकालीन अधिवेशन बुलाया जाए।
मालूम हो कि एक जनवरी को सपा का राष्ट्रीय प्रतिनिधि सम्मेलन बुलाने के रामगोपाल के फैसले को लेकर मुलायम सिंह यादव ने गत शुक्रवार को रामगोपाल तथा अखिलेश दोनों को पार्टी से छह साल के लिये निष्कासित कर दिया था।
शनिवार को अखिलेश द्वारा अपने आवास पर बुलाई गई विधानमण्डल दल की बैठक में 200 से ज्यादा विधायकों के जुटने और मुलायम द्वारा पार्टी राज्य मुख्यालय पर आहूत प्रत्याशियों की बैठक में बहुत कम उम्मीदवार पहुंचने से मिले संदेश और सपा के वरिष्ठ नेता की मध्यस्थता के बाद मुलायम ने अखिलेश और रामगोपाल का निष्कासन रद्द कर दिया था। हालांकि दोनों की बर्खास्तगी की मुख्य वजह बने राष्ट्रीय अधिवेशन को बुलाने का फैसला बरकरार रखा गया था। (भाषा)