पीठ ने चिकित्सकों की इस राय के बाद यह कदम उठाया है कि गर्भावस्था के इस चरण में गर्भपात करने पर भी शिशु के जिंदा पैदा होने की संभावना है, जिसके कारण उसे नवजात देखभाल इकाई में भर्ती कराने की जरूरत पड़ेगी।
न्यायमूर्ति आरवी घुगे और न्यायमूर्ति वाईजी खोबरागड़े की पीठ ने 20 जून के अपने आदेश में कहा कि यदि गर्भपात की प्रक्रिया के बावजूद किसी बच्चे के जिंदा पैदा होने की संभावना है, तो वह बच्चे के भविष्य को ध्यान में रखते हुए गर्भावस्था की अवधि पूरी होने के बाद प्रसव की अनुमति देगी।
दुष्कर्म पीड़िता की जांच करने वाले चिकित्सा दल ने कहा था कि अगर गर्भपात की प्रक्रिया को अंजाम दिया जाता है, तो भी बच्चा जीवित पैदा हो सकता है और उसे नवजात देखभाल इकाई में भर्ती करने की जरूरत पड़ेगी, साथ ही पीड़िता की जान को भी खतरा होगा।
Edited By : Chetan Gour (भाषा)