भाजपा ने 2017 के विधानसभा चुनाव में विजय रूपाणी के नेतृत्व में चुनाव लड़ने का रिस्क लिया था, लेकिन 150 सीटों का लक्ष्य 99 पर आकर सिमट गया था। 2022 के विधानसभा चुनाव के लिए भाजपा को खतरे की घंटी सुनाई देने लगी है।
दरअसल, करीब 21 साल से गुजरात की सत्ता पर लगातार काबिज भाजपा को अब सत्ता विरोधी लहर (anti-incumbency) का डर सता रहा है, इसीलिए विधानसभा चुनाव से पहले रूपाणी से पार्टी ने इस्तीफा ले लिया। हालांकि यह भी माना जा रहा है कि रूपाणी को हटाने की पटकथा काफी पहले ही तैयार कर ली गई थी।
रूपाणी को हटाने का सबसे बड़ा कारण पाटीदार समाज की नाराजगी को भी माना जा रहा है। पटेल-पाटीदार समाज का गुजरात में काफी प्रभाव है। वह चाहता है कि मुख्यमंत्री पाटीदार समाज से होना चाहिए। सबसे खास बात यह है कि यह समाज भाजपा का प्रतिबद्ध वोटर माना जाता है। हालांकि पाटीदार अनामत आंदोलन के समय इस समाज में भाजपा को लेकर नाराजगी देखी गई थी। लेकिन, फिर भी पाटीदार समाज के बड़े तबके ने भाजपा को ही वोट दिया था।
यदि भाजपा ने अब भी पाटीदार समाज को अनदेखा किया तो संभव है आगामी चुनाव में भाजपा को झटका लग जाए क्योंकि 2017 के चुनाव में भाजपा जैसे-तैसे बहुमत ही जुटा पाई थी जबकि 182 सदस्यीय विधानसभा में भाजपा 99 सीटों पर ही सिमट गई थी। दूसरी विजय रूपाणी जैन समाज से आते हैं, जिसकी जनसंख्या 2 प्रतिशत से कम है, जबकि पाटीदार समाज की आबादी 12 प्रतिशत के लगभग है।
रूपाणी के विरोध में एक और बात जा रही थी। भाजपा द्वारा कराए गए सर्वे में रूपाणी को लेकर मतदाताओं का फीडबैक नकारात्मक रहा था। लोग उनकी कार्यशैली से खुश नहीं थे। कोरोना काल में 'मिस मैनेजमेंट' भी रूपाणी की विदाई का बड़ा कारण बना है। माना जा रहा है कि राज्य का अगला मुख्यमंत्री पाटीदार समाज से होगा। इनमें मनसुख मांडविया, नितिन पटेल, पुरुषोत्तम रूपाला या फिर गोरधन झड़ापिया में से कोई राज्य का मुख्यमंत्री हो सकता है।