रातापानी मीटिंग का तातापानी-सा करंट

अजय बोकिल

मंगलवार, 24 दिसंबर 2013 (18:18 IST)
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को खां, बड़ी दिक्कत हे। एक तो डिपार्टमेंट मनचाहा मिला नई, ऊपर से पचास नसीहतें ओर गले पड़ गईं। ये मत करो, वो मत करो। लंका-झंका छोड़ो। भिरष्टाचार से दूर रहो, पुराने खूसट स्टाफ को बदलो। महकमे में विजिलेंस बनाओ।

अपने स्टाफ की जासूसी कराओ। कोई लेन-देन खुले आम तो नई चल रिया हे, इसपे नजर रखो। गोया सभी को विभाग के नाम पे होम पकड़ा दिया हो। ऊपर से ये हिदायत के पिरदेश को नंबर वन बनाना हे। पब्लिक की उम्मीदों को पूरा करना हे।

अब आप ई बताओ, भिरष्टाचार कोई मिटने वाली चीज हे? अरे, वो ई मिट गया तो पोलिटिक्स में इत्ते साल जूते घिसने का मतलब क्या? मियां, दोबारा सरकार बनती हे तो माहोल तलाकशुदा की दूसरी शादी का-सा रेता हे।

सब को सब पता रेता हे पर अदा नई नवेली की रेती हे। बस पेली से शादी के मुकाबले बेंड ज्यादा जोर से बजते हें ओर बाराती दोगुने जोश से नाचते हें। इस बार चुनावी हल्ला कांटे की टक्कर का था, पर पब्लिक ने सीएम के नाम पे जिता दिया।

दोबारा मतंरी भी बन गए। भरोसा था के पिछली कसर इस बार निकल जाएगी। बातचीत में मनचाहा मलाईदार महकमा सुझाया भी हुआ था। पर पेली केबिनेट में ई मन खट्टा हो गया। रातापानी का माहोल तातापानी सा लगने लगा। महकमा मिला भी नई था के हिदायतों ओर सावधानियों के ओले बरसने लगे।

खां, अब आप से क्या छुपाना। पेले तो शक की बिना पे टिकट काटने की साजिश चली। मुश्किल से टिकट मिला तो चुनाव जीतने के वास्ते भोत मेहनत करनी पड़ी। तगड़ा माल लगाना पड़ा। मन में भरोसा था के सही विभाग हाथ लग गया तो ब्याज सहित रिकवरी हो जाएगी।

ऊपर से पिरेशर भी डलवाया हुआ था। नाते-रिश्तेदारों को भरोसा दिया हुआ था, एक बार बन तो जान दो। कोई भी परीक्षा पास करवा देंगे। ठेकों की लिस्ट भी बना ली थी। अपनो को मेसिज दिया हुआ था के कमाऊ पोस्टिंग दिलवा देंगे। लोग एडवांस में बधाई भी दे गए थे। गुलदस्तों के साथ नई सेटिंग की महक आ रई थी।

इसका मतलब अपन भिरष्टाचार के फेवर में हें, ये थोड़े ई हे। लेकिन जो बरसों से चला आ रिया हे, उसे केसे बदल दें। पिरशासन के अंदरखाने जो जबान चलती हे, उसे केसे बदल दें। बोले के पुराना स्टाफ हटा दो। अरे, पुराने को ई तो माल रोड के रस्ते पता रेते हें।

शपथ लेते ई पेला फोन उन्ही का आया था। बोले के सर आप डिपार्टमेंट सही जुगाड़ लेना। बाकी अपन तो हें ईं। अब एसे जानकार आदमी को हटा दें तो क्या आवक-जावक वाले को रख लें? कहा के इंटरनल विजिलेंस बनाओ! अरे, जो हें वो ई तो संभल नई पा रिए हें।

डिपार्टमेंट में अपना काम करें के अपनों की जासूसी करा के खुद का पटिया उलाल करवाएं। ये तो अड़ीबाजी हुई के भिरष्टाचार से दूर रहो। अपन ने तो करा ई कब था? जो करा था, वो तो जनता की 'सेवा' थी। अब जनता की सेवा भी न करें तो क्या करें?
बतोलेबाज

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